Wednesday, January 2, 2013

2012- फेसबुक कहानी -1

2012- फेसबुक कहानी -1


                   वह गणित में कुशाग्र रहा है . पहले कुछ वर्षों फेसबुक के विषय में सुनते हुए भी रूचि नहीं लगी थी . मार्च में अनायास इक फेसबुक आईडी बनाई .कुछ दिनों में लगा सिर्फ वल्गेरिटी या समय की खराबी नहीं कहा जा सकता इसे . जो कुछ अधकचरे दर्शन या विचार थे मन में किसी किसी साधन से पोस्ट करने आरम्भ कर दिए . एक दिन एक समूह निर्मित कर दिया . अपनी समझ के विषय में स्वयं प्रमाण पत्र जारी किया और असाध्य से सामाजिक प्रॉब्लम का क्या गणित बनाया उसे लगा सरलता से हल हो जाएगा . एक हल निकाला त्रुटिपूर्ण हल में आया उत्तर अति संतोष कारी मिला.  अपरिचितों के लाइक को गंभीरता से लेते हुए . अपरिचितों को मित्र सूची में जोड़ने के लिए अति आशावान हो सन्देश प्रेषित करने लगा .  फिर समूह पर एक बहुत ही टेलेंटेड सफल विदुषी महिला को ला , एडमिन बनाया .उनको सन्देश लिखने लगा .   एक दिन सन्देश की प्रत्युत्तर में उन्होंने दीदी संबोधन अगर उचित लगे तो दीदी लिखने का अधिकार दिया . वह दीदी तो नहीं जीजी (बहन का संबोधन ) उन्हें करने लगा .                    
                      विचारों को मानों पंख मिल गए . वे ऊँची उड़ान भरने लगे लगा , विश्व जीत लिया . फिर समूह सदस्य बढाने की युक्ति कर एक दिन एक अन्य अपरिचित नारी को समूह पर सदस्य बनने को प्रेरित किया . समूह पर जुड़ने के बाद एक पोस्ट पर विचारों के अंतर पर अप्रिय शब्द उपयोग होने लगे .  जीजी ने संदेशों के माध्यम से नाराजगी व्यक्त कर एडमिन के शक्ति प्रयोग कर अनुशासित करने कहा . सख्ती स्वभाव में नहीं थी उसके , सोचा कुछ अवधि में स्वयं सयंत हो जायेंगे सब . तो भी एडमिन के गुण ना होने की बात अनुभव कर एडमिन से स्वयं को वंचित कर लिया . यहाँ विवाद ओर  गहरा गया . अपशब्द प्रयोग करने के आरोप में समूह पर से उन्हें विदा किया गया .पर जीजी  अपरिचित भाई से नाराज हो गई .
                 भाई ने स्वाधीनता दिवस पर आई एक पोस्ट

 "हमको आजादी आधी रात को मिली थी ,जिसका सवेरा अभी तक नहीं हुआ है "

 पर अपनी ओर से जोड़ा
"हर रात्रि के बाद सुबह प्रकृति ले आती है पर स्वतंत्रता की पहली सुबह हम सच्चे नागरिकों को ही लाना है ,
पिछले चूक गए हों हम ना चूकें .
नहीं तो दायित्व अगली पीढ़ी पर जाने का सिलसिला यूं ही चलेगा
तब यह प्रश्न अगली पीढियां भी करते जाएँ यह हमारी खेदजनक असफलता होगी "
और समूह पर पोस्ट कर दिया .
                           पहले ही नाराज जीजी की पारिवारिक पृष्ठभूमि में स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिए पूर्वज तो थे ही , साथ ही उन्होंने ऐसे वरिष्ठ आदरनियों को समूह पर आमंत्रित कर रखा था जिनका या जिनके बड़ों का भी स्वतंत्रता की लड़ाई  में भूमिका रही थी .
भाई का "पिछले चूक गए " शब्द उन्हें चुभा , भाई को क्षमा मांगने को निर्देश किया . भाई यद्यपि अभिमानी नहीं था .  पर मूर्ख था किसी दृष्टि से टिप्पणी उचित नहीं है यह समझ ही ना थी .  क्षमा मांगने से बचते हुए एक दिन समूह से किनारा कर लिया .मूर्ख जिसे भाई सा मान जीजी दे बैठी थी एक दिन अपनी मित्रता सूची  से उसे वंचित कर मूर्ख मित्र से समझदार दुश्मन श्रेयस्कर है जताया .
भाई ने ह्रदय में किसी जगह गलती की चुभन अनुभव की . भले ही जीजी अपरिचित थी , भौगोलिक दृष्टि से इतने दूर थे जीवन में मिलना संभावित ना था . पर अपरिचित ही सही वैचारिक भाई बहन का रिश्ता खोया था . लगा वास्तविक जीवन में कुछ खो गया . फेसबुक को अत्यंत गंभीरता से लेना पसंद था .
             लक्ष्य जिसमें समाज को बुराई विहीन देखने का स्वप्न था हवा हो गया था . विचार जो ऊँचाइयों पर पहुंचे थे भले ही भ्रम में सही लक्ष्य को आसान पहुँच में देख रहे थे , तेजी से यथार्थ कठोर धरातल पर उतर आये थे.   सम्हाला था शक्ति पुनः जुटाई थी . धरातल पर पहुँच लक्ष्य अत्यंत कठिन लगा था . फिर भी जूनून है  लगा हुआ है .
               मालूम है समाज को बुराई विहीन करने के यत्न अपर्याप्त संख्या में आज हो रहे हैं . ऐसे में वह लक्ष्य  "समाज को बुराई विहीन" करने का निरंतर और दुर्गम और दूरस्थ प्रदेश की ओर स्थापित होता जायेगा . भाई का जीवन जैसा आगे बढेगा उसके यत्न और लक्ष्य की ओर बढ़ते कदम क्रमशः शिथिल होते जायेंगे .लक्ष्य और दिशा में बढ़ने के बीच  दूरियां बढ़ जायेगी , किसी दिन जीवन समाप्ति का पल आएगा , सुन्दर कल्पना "बुराई विहीन मनुष्य समाज "  स्वप्न बन अंतिम मुंदते नयनों  में अधूरा कैद हो चला जायेगा .
                  "एक मनुष्य का जीवन अवश्य छोटा है, नश्वर है . पर मनुष्य जीवन अनश्वर है ."        
                                                              अतः उसके सुखी बनाये जाने के प्रयास यह भाई भी करेगा कुछ अभी के भद्रजन भी करेंगे और आगामी मनुष्यों में से कुछ करते रहेंगे .
पर इतना बड़ा मूर्ख शायद ही कोई दूसरा होगा जिसका सामर्थ्य तो कुछ ना होगा ..

अपने आधे अधूरे दर्शन और लेखन से जो इसे साधने का प्रयत्न कर रहा होगा ...
एक मूर्ख ही वह करता है जिसका प्रतिफल कुछ नहीं होता ....   है ना ?  

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