Sunday, January 27, 2013

सुरम्य साहित्य उद्यान


सुरम्य साहित्य उद्यान
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कोई लगाते सुरम्य उद्यान और कोई सजाते गृह आलीशान 
कोई करते नित आविष्कार और कोई बनते अधिक धनवान   

ज्यों बढ़ते जीवन पथ में जुटते सच करने सब अपने सपने 
कुछ करते नक़ल दूसरे की और कुछ के लक्ष्य निराले होते 

बहुत पा लेते जीवन सुख और कुछ रह जाते उदास भटकते 
करते पुरुषार्थ सम्पूर्ण प्रतिभा से पर कुछ सीमा होती सबकी 

जीवन पूर्ण हो जाता अनेकों का पर रह जाते मंतव्य अधूरे 
अपनों को दुःख बहुत होता जब जाते यों देखते अपने को 

भले ना पहुँचूँ मै लक्ष्य पर और रह जाएँ मेरे स्वप्न अधूरे 
मै रखूँगा पावन उद्देश्य और होगा यत्न निराला बनाने का  

आरम्भ है प्रयास लगाने का एक सुरम्य साहित्य उद्यान 
विस्तृत हो आकाश पृथ्वी पर बिन सीमा का बने उद्यान

लगाऊं नित नूतन पौधा साहित्य रूप पुष्प खिलें जिनमें   
सुरभित पुष्पों से आत्मज्ञान और विवेक जागृत हों सबमें 

न्यायप्रियता आये सबमें और समझें सब परस्पर संवेदना  
परस्पर स्नेह उमडे ह्रदय में और उतरे वह आचार कर्म में  

बँटता मनुष्य विश्व में बनी बात बात की सीमा रेखाओं से  
सीमा सब टूटें व स्वतन्त्र मनुष्य हो जो स्वभाव है उसका   

ऐसा बिन सीमा एक सुरम्य साहित्य उद्यान हम लगायें 
समवेत यत्न से होगा पूरा अतः सहयोगी आप हस्त बढ़ाएं  


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