Monday, January 14, 2013

अन्धकार से आलोक तक


अन्धकार से आलोक तक 
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ध्रुव प्रदेशों में , रात और दिन छह महीनों के होते हैं . वैसे स्थान पर एक शिशु रात आरम्भ होने के समय जन्मता है , और पांच माह का हो स्वर्ग सिधार जाता है . उसने पृथ्वी पर, जितना समझ सका पूरा जीवन अन्धकार ही देखा . उसके ऐसा देखने से पृथ्वी के बारे में यह सच नहीं होता . पृथ्वी से हमेशा ही अंधकार और आलोक क्रमशः आता जाता रहा है . कोई यह ना जाने तो भी यह सच बदलता नहीं है.

आज मनुष्य समाज में बुराई की भरमार है . ऐसे समय में हम जन्म ले जीवन भर यही सब अनुभव करते हैं . ऐसे में हमने बुराई रुपी अन्धकार को अपने सम्पूर्ण जीवन में देखा . हम समझने की भूल कर सकते हैं .  यह मान सकते हैं ,मनुष्य समाज है तो बुराई का अस्तित्व होगा ही. लेकिन बुराई विहीन (आलोक रुपी) मनुष्य समाज  कभी तो रहा होगा . और फिर कभी आज के अन्धकार के बाद यह  आलोक पुनः व्याप्त होगा . इसे   अनुभव नहीं होने के बाद भी मान लेना पूरा ज्ञान है . और जब इसका विश्वास समाज में ज्यादा को हो जाए तो ही इसके प्रयत्न होंगे और यही प्रभात के आलोक का मनुष्य समाज में पुनः सर्वत्र व्याप्त होने का कारण बनेगा.

हम सभी ने स्वयं या अपनी माँ बहनों को ऊन या धागों के काम के बीच उन्हें इनकी गुत्थियों में उलझने से परेशान अवस्था में देखा होगा . इन गुत्थियों को धैर्य और धीरे से सुलझाने पर ये सुलझ जाती हैं . जबकि अधीर होने पर इनकी गाँठ सख्त होती जाती हैं और सुलझाने के गलत यत्नों से इनमें नई गांठ लग और अधिक उलझने की सम्भावना बन जाती है . कभी कभी इन गांठ को सुलझाना कठिन हो इन्हें अलग कर फेंकना  ही उचित विकल्प बन पड़ता है .

सामाजिक बुराई के बढ़ने पर हम इसी तरह अधैर्य का परिचय आज दे रहे हैं . ज्यादातर इस पक्ष के मानने वाले वाले हैं , सभी बुराई व्यवस्था गत सख्ती से ठीक हो सकती हैं . जबकि सख्ती कई विषयों में हल नहीं देती बल्कि समस्या को बढ़ा देती हैं . 

वास्तव में व्यवस्था समानांतर अनुशासन के लिए ठीक है . पर पूरा इस पर निर्भरता से ज्यादा कुछ या स्थाई उपलब्धि नहीं मिलती है . हमारी शिक्षा , संस्कार और धर्म नैतिकता , न्यायप्रियता , परस्पर विश्वास ,प्रेम और करुणा हमारे ह्रदय में स्थापित कर सकते हैं . इसके लिए समाज और परिवार के बड़ों  के आचार ,व्यवहार और कर्मों में इस अनुशासन को देखते और सुनते छोटों में सरलता से इन के पालन की प्रेरणा दे जा सकती है . इस तरह जब सब अच्छे बन सकेंगे तो बुराई अपने आप कम होती है . फिर व्यवस्था बची बुराई पर नियंत्रण पाने में सफल हो जाती है .

बुराई की सब चर्चा और तर्क-वितर्क ही करें . तो आपसी दोषारोपण से गुत्थियाँ और कसती जायेंगी . पर धैर्य से हम सब विवेक और त्याग की रीति अपनाएंगे तो गुत्थियाँ ( अर्थात बुराई ) कम होते हुए समाज और देश में सुखमयी ताज़ी और  सुगन्धित बयार  जैसी सर्वत्र फ़ैल हमें सुरक्षित और प्रसन्नता का बोध कराएगी .

अंधकार और प्रकाश हमेशा व्याप्त नहीं रहता . आज के अन्धकार के बाद का प्रभात हमें ही लाना है ... आवश्यकता संकल्प और इक्छा शक्ति प्रदर्शित करने की है ...

जो सुर्ख़ियों में हैं , लाइम लाइट में है , नायक रूप प्रसिध्द हैं , जिनका बड़ा प्रशंसक वर्ग है ... उन्हें सब देख सुन रहे होते हैं . जैसा ये करते हैं , उनकी नक़ल देखने वाले करते हैं . ये वर्णित बड़ों से बड़े हैं . इन पर प्रथम दायित्व आता है . ये अनुशासित हो नैतिकता के आचरण और कर्म करें . इनसे प्रारम्भ होती अच्छाई की धारा इस धरा पर से बुराई को बहा ले जाने में सफल होगी  

               

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