Saturday, January 26, 2013

दूर क्षितिज में जीवन आशा की किरण


दूर क्षितिज में जीवन आशा की किरण (भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार की दुविधाएं )
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एक परिवार में यह हो रहा है . 2 बच्चे और माँ-पिता सदस्य हैं . बच्चे में पहली पुत्री और छोटा पुत्र है . दोनों कॉलेज जाते हैं . विशेषकर पुत्र पालकों के निर्देशों के अवहेलना करता है . और कई बार उनसे उलझ घर में अप्रिय स्थितियों का कारण बनता है . डांट -डपट निष्प्रभावी होती हैं , पिता उसे पीटे जाने को भी उसकी वय को देखते उचित नहीं मानते . अप्रिय स्थिति निर्मित होने के बाद विशेष रूप से पिता और पुत्र दोनों मन ही मन पछतावा करते हैं . पिता सोचता है मै भी इस उम्र में इस प्रकार हरकतें करने लगा था . क्या मै इस कारण इसकी अनदेखी कर दूं ? पर इससे मै  जीवन में पिछड़ गया ठीक शिक्षा पूर्ण नहीं कर सका अब संघर्षों में जीवन बिताने को बाध्य हूँ . अगर पुत्र को ना समझाऊँ तो क्या वह भी यही कठिन स्थितियों में जीने को बाध्य ना होगा ? जबकि उसके सपने तो आसमान छूने देखते हैं . 

इधर पिता से मार -डांट से अप्रसन्न होकर वह प्रतिक्रिया में उनसे मुहं लगने की बेशर्मी करता है . समय थोडा निकलता है और क्रोध थोडा शांत होता है , तो स्वयं पर ग्लानि करता है . सोचता है जिन पिता को अपने खातिर (बच्चों ) अथक परिश्रम और चिंता में समय /दिन बिताता देखता है . उनके घर में विश्राम के समय में भी उनका आदर न कर वह उन्हें चिंता और निराशा में डाल अच्छा नहीं करता . उसे स्वयं की लाचारियों पर पछतावा होता है . 

पिता- पुत्र ऐसा मानते हुए भी इन स्थितियों को नित आमंत्रित कर लेते हैं . इस तरह घर के चारों सदस्य अस्वस्थकर घरेलु वातावरण में घुटन अनुभव करते दिन बिता रहे हैं . एक दिन इस  स्थिति से बचने के लिए चारों शांतिपूर्ण ड्राइंग रूम वार्ता को सहमत होते हैं . और पिता पुत्र में संवाद इस तरह आरम्भ होता है ..

पुत्र .. आप हमेशा मुझे टीवी देखने, नेट सर्फिंग ,मोबाईल पर बातें और बाइक से घूमने पर रोक-टोक करते हैं , मुझे अच्छा नहीं लगता .    
पिता .. तुम्हारे पढने के लिए यह समय महत्वपूर्ण है . पढाई छोड़ इन बातों  पर ज्यादा  समय खर्च करने से तुम अच्छा रैंक न बना सकोगे इसलिए .
पुत्र .. पर मेरी उम्र के अधिकतर लड़के यही सब करते हैं , मुझ पर आप पाबंदी क्यों लगाते हैं ?
पिता .. मैंने बताया न यह तुम्हारे पढाई के लिए ठीक नहीं , और फिर इन बातों पर खर्च बढ़ने से घर चलाना भी कठिन होता है .
पुत्र .. घर तो चल रहा है , कहाँ तकलीफ है ?
पिता .. तुम्हारे इन खर्चों के लिए , मै , तुम्हारी मम्मी सालाना एक दो जोड़ी कपडे ही ले पा रहे हैं , तुम्हारी बहन को हम गाड़ी (स्कूटी) नहीं दिला  पा रहे हैं .और भी जगह मन मारते हैं .
पुत्र .. आपके पास बैंक में जमा है , क्यों नहीं दिलाते आप दीदी को स्कूटी  ?  
पिता .. बेटे अगर तुम पढने में मन लगा रहे होते और अच्छी रैंक ला रहे होते जिससे तुम्हारे अच्छे भविष्य का हमें विश्वास होता  तो मै ये बचत की चिंता नहीं करता . कल तुम यदि कुछ विशेष ना कर सको तो छोटे -मोटे काम व्यवसाय के लिए भी कुछ धन तो लगेगा अतः जोड़ना जरुरी है . नहीं तो तुम्हारे सपने मेरे तरह ही टूटेंगे . तुम हमारे पुत्र हो तुम्हे संघर्षरत -उदास देख दुखी तो हम भी  होंगे ना .
पुत्र .. आप भविष्य की जरुरत से ज्यादा चिंता कर वर्तमान बिगाड़ रहे हो . दादा (आपके पिता) ने तो ऐसा नहीं सोचा , अन्यथा आप इससे बेहतर होते .आप भी ऐसे ही छोड़ दीजिये .
पिता .. वे अपढ थे दूसरे की दूकान पर छोटी नौकरी कर हमें पालते थे . उन्हें हमारे भविष्य को संवारने का तरीका और सोच नहीं थी . पर मै अपने जीवन अनुभव से इसे समझ तुम्हें समझाता हूँ .
पुत्र .. पर इसमें मेरा बाइक पर जाना कहाँ बीच में आ जाता , जिस पर आप नाराज होते हो .
पिता .. बाइक पर घूमना कई कारणों से आपत्तिजनक है इसलिए .
पुत्र .. एक दो घंटे घूमने से क्या ख़राब हो जाता है .
पिता .. 2 घंटे का समय ख़राब होता है .घूमते हो तो पेट्रोल ज्यादा लगता है . हमारा और देश का पैसा लगता है . तुम और तुम्हारे तरह के बच्चे बिना वजह घूम शहर की सड़कों पर यातायात भार बढाते हैं . जरुरी कार्यों से सड़क से जा रहे लोगों का समय ज्यादा लग जाता है . और 
पुत्र .. और क्या ?
पिता .. जो तुम्हे बड़ा करने और बड़ा देखने के लिए अपनी इक्छाओं पर नियंत्रण कर , तुम्हें ज्यादा खुश देखने के लिए साधन जुटाते हैं , उनका तो तुम आदर नहीं कर पाते , ऐसे में जब तक तुम घर नहीं लौटते , किसी से  असम्मान से बातें करते परेशानी में तो नहीं पढ़ गए सोचते तुम्हारी माँ चिंतित रहती है , जो उनका स्वास्थ्य बिगाड़ती है . तुम फालतू चक्करों में थकते हो फिर पढने में ऊर्जा नहीं लगा पाते . तुम्हारे सपने इस तरह तुमसे दूर होते जायेंगे .
पुत्र .. ये बातें तो सबके साथ हैं , पर वे तो बेपरवाह हैं .
पिता ..  सब जैसा करें वही तुम्हें करना पड़े , क्या यह जरुरी है ? तुम सबसे अनोखा और अच्छा मार्ग क्यों नहीं अपना सकते ?  अपनी कमजोर संकल्प शक्ति के लिए क्यों इन बातों का बहाना करते हो ? अगर ऐसे बहाने में ही पड़ना है तो अपने महत्वकांक्षी सपनों को त्याग दो , जिनके लिए सब से अलग और अथक इक्च्छा-शक्ति से श्रम और संकल्प लगाने से ही जो पूरे हो सकते हैं .
पुत्र .. पर पापा इतनी क्लास निकालने तक , मै अच्छा परिणाम नहीं ला सका हूँ , क्या अब कुछ हो पायेगा ?
पिता .. बीते समय का दुःख या बहाना कर आज मार्ग नहीं बदलोगे तो , अब तक की लापरवाही से हुई क्षति से ज्यादा क्षति तुम्हे देखनी पड़ेगी . और सपनों से मेल करते प्रयास ना करने से तुम जीवन में अवसाद ग्रस्त हो सच्चे जीवन सुख से वंचित हो जाओगे . धन हीनता तो कम दुखी करेगी , पर अपनी स्वयं की असावधानी से पिछड़ने की हताशा जीवन दुखों से पूर देगी .
पुत्र .. (समझने के भाव के साथ ) .. पापा माफ़ कर दो , मम्मी माफ़ करो .. कोशिश करूँगा परिवर्तन ला अब से व्यवहार करूँ . अगर त्याग का प्रश्न है तो आप नहीं कुछ मै त्याग करूँगा .. अन्यथा मै स्वयं को ही माफ़ न कर सकूँगा .

चर्चा के बाद वातावरण कुछ बोझिल है , नम हुई आँखे पोंछते हुए हुए माँ और पिता अपने लाड़ले की पीठ थपथपा अंक से लगाते हैं उस पल .. चारों को दूर क्षितिज में जीवन आशा की किरण प्रस्फुटित होती लगती  है ...   
     

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