परस्पर बाटें जीवन में मरते सौंप जाएँ
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पुष्प ये सुन्दर रूप से सबको मोहेगा
बिना निज आशा सुगंध बिखरायेगा
रूप ,सुगंध ख़त्म होते मुर्झा जाएगा
कर्तव्य पुष्प खिलेंगे ग्रहण कर लेंगे
सुरभि व रूप से अपनी मोहते रहेंगे
पर हमें नस्ल पौधे की बचानी होगी
जिस पर खिलें निरंतर लगानी होगी
ग्रहण गुण निस्वार्थ इनसे करने होंगे
बिखेरें परस्पर प्रेम कर्म वे करने होंगे
जीवन रहते शेष आचरण रखने होंगे
आने वाले तब गुण ऐसे ग्रहण करेंगे
निरंतर चलता आया क्रम यों चलेगा
अन्यथा ना संरक्षित कर सकें हम तो
नस्ल पौधे देते सुन्दर-सुरभित पुष्प
कम होते क्रमशः एक दिन ना बचेंगे
विचारें हमें हो रुचिकर रूप सुरभि तो
परमार्थ पुरुषार्थ व श्रम लगाना होगा
हमें दिया जो विरासत पूर्वजों ने वह
सन्तति को अपनी लौटाना होगा
धरोहर उधार में मिली हम सम्हालें
असावधानी से इसे हम ना खा जाएँ
सुरक्षित रखें इसे ना बने अति स्वार्थी
परस्पर बाटें जीवन में मरते सौंप जाएँ
--राजेश जैन
25-01-2013
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