Sunday, January 13, 2013

स्वार्थ - महत्वकांक्षा

स्वार्थ - महत्वकांक्षा 
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हमारी महत्वाकांक्षा प्रगति की ओर प्रेरित करती है . संकल्प हेतु प्रेरित करती है . इक्छाशक्ति बढाती है . कर्मठ बना सकती है . लक्ष्य पर पहुंचा सकती है . इस तरह मनुष्य जीवन सार्थक करने में योगदान कर सकती है .
यह सब व्यक्तिगत हित में होते हैं . हमारे जीवन स्वप्न ,हमारी महत्वाकांक्षा प्रेरित सद्गुणों और अनुशासित व्यवहार और कर्मों से फलित होते हैं . पर जब हम सर्वहित के दृष्टिकोण से देखें तो  आवश्यक नहीं हमारी उपलब्धियां सर्वहित कारी ही हों .

६५ वर्ष पूर्व परतंत्रता की जंजीरों से मुक्त हो हम स्वतन्त्र हुए . स्वतन्त्र होने के पूर्व पृथ्वी का जो क्षेत्र भारत  कहलाता था . वह हमारे पूर्व शासकों की धूर्तता के कारण एक नहीं रह सका . धूर्तता से स्वतन्त्र होने के पूर्व ही इन्होंने कुछ तत्कालीन व्यक्ति (यों ) के ह्रदय में व्यक्तिगत महत्वकांक्षा का बीज रोपित कर दिया . स्वतन्त्र होते होते जिसके कारण वे राष्ट्राध्यक्ष बनने लालायित हुए . पृथ्वी के इस हिस्से में एक काल्पनिक रेखा खिंची . इस रेखा के दोनों ओर मानव लहू से धरती लाल हुई . हमारे ही माँ बहनों की लज्जा , स्वार्थ सम्मोहन में स्वयं हमारे अपनों द्वारा ही क्षत -विक्षत की गई . जो धूर्त थे उन्हें बिना धन का मनोरंजन लगा . घडियाली आंसू उनके भी दिखे . पर एक का दो हुआ देश , चंहु ओर हानि ही सह रहा है  तब भी  और आज तक .

स्वार्थ - महत्वकांक्षा ने अपमान और हिंसा के जो निंदनीय प्रतिमान उस समय बनाये , उससे उपमहाद्वीप के मानुष मन में वैमनस्य का  स्थाई भाव विद्यमान हुआ . वह पीढ़ी जिसने यह सब प्रत्यक्ष देखा सहा , अधिकांश संसार से विदा हुए . पर  वैमनस्य का यह भाव थोडा भी कम नहीं हुआ . कहें तो बढ़ ही गया .

६५ वर्ष के बीते समय में काल्पनिक इस रेखा पर कई युध्द , संघर्ष हुए और आज तक जारी हैं. राष्ट्र रक्षा पर दोनों ही ओर अपार धन राशि सिर्फ हथियार प्रबंधन पर व्यय हुई . जो कहीं ओर लगती तो अविभाजित भारत आज एक विकसित राष्ट्र के रूप में पहचान बना सकता था. काल्पनिक  रेखा के दोनों ओर संघर्ष में कितनी ही माँ की गोद सूनी हुई ,कितनी ही दुर्भाग्य शाली नारियों का सिंदूर लील लिया गया  . और कितनी ही बहनों का रक्षा सूत्र उनके हस्तों में ही रह गया , वह कलाई जिस पर वह शोभित होता था , हमेशा को खो गई .

विडम्बना , घोर दुःख  "इस पूरे दुर्भाग्य पूर्ण क्रम को जिस दृष्टिकोण से देखा जा रहा है" , नहीं लगता क्रम निकट भविष्य में थमेगा .
फिर कोई अनहोनी घटित होगी फिर कुछ घरों ,नगरों में कोहराम और मातम के दृश्य दिखेंगे और फिर अपर्याप्त उपाय होंगे .. संवेदना और सहानुभूति कुछ समय उमड़ेगी . राष्ट्र प्रेम के गीत बजेंगे , गाये जायंगे . नए भी बनेंगे . पर जिनका ऐसा करीबी ऐसी शहादत   देगा उसके ह्रदय की पीर और बाद के जीवन संघर्षों की दर्दनाक दास्तान जानने का समय किसी के पास न होगा .
                
  स्वार्थ - महत्वकांक्षा आज भी अस्तित्व में है . जो इन बातों से बेपरवाह पहले थी , अभी है और आगे भी रहेगी .
धिक्कार स्वार्थ - महत्वकांक्षा .... महा धिक्कार स्वार्थ - महत्वकांक्षा 

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