Monday, January 21, 2013

गहन मातम

गहन मातम
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दिसम्बर ,जनवरी माहों में दो कारणों से देश का जन-मानस उव्देलित रहा . एक कारण घिनौना है ,नारी पर पुरुष शोषण ,अत्याचार और उनकी हत्या तक कर देने की घटनाएँ हुईं . पहली घटना 16 दिसम्बर को दिल्ली में सरेआम सड़कों पर बस के भीतर बर्बर दुष्कृत्य की थी .पीड़िता 29 दिसम्बर को असमय इससे काल कवलित हुई . इस घटना से अभूतपूर्व जनाक्रोश सभी ओर दर्शित हुआ . ऐसा लगा , इसे देखकर पुरुष के भीतर बैठा जानवर जो इस तरह नारी  शोषण करता है , भयभीत होगा . और इस तरह के  अत्याचारों के बारे में कम से कम कुछ देखने सुनने नहीं मिलेगा  , इस तरह का दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से  कुछ समय देश में निजात मिलेगी . पर दुर्भाग्य इनकी श्रृंखला अनवरत जारी है . नित नई घिनौनी करतूत पढ़ने  , सुनने मिल रही है . जानवरीयत का रोग ,उसकी जड़ बहुत गहरी है . कोई भय कोई अपमान इन्हें नहीं रोक पा रहा है . जहाँ अबला को अकेला बेसहाय पाता है . पुरुष वासना मर्यादा त्याग देती है . नंगाई का नाच कर ही उतरती है . बाद में अपराधी खेद रखता है या नहीं , मालूम नहीं . पर पीड़ित बच्ची , युवती का जीवन विकट हो जाता है . नारी समाज में कई तरह का शोषण में तो जीने को बाध्य है ही , इन बर्बर घटनाओं से पीडिता के कोमल ह्रदय पर जो भय ,पीड़ा और अपमान की रेखा खिंच जाती है वह पूरे जीवन को त्रासगी  पूर्ण कर जाती है . अपने अपराध को छिपाने के लिए अपराधी कई बार उनकी हत्या भी कर दे रहा है . जिन माँ-पिता ने दुलार से पालन कर उनके भविष्य के सपने संजोये होते हैं . वे बेटी के इस तरह पीड़ाजनक अकाल निधन से अपमान और दुःख में आजीवन मूक विलाप को बाध्य होते हैं . किसी की सहानुभूति या सरकारी क्षतिपूर्ति के प्रयास उन्हें यथोचित दिलासा नहीं दिला पाती . विडंबना यह होती है अपराधी पुरुष की स्वयं की पत्नी ,बहन या बेटियां होती हैं . क्या वह अपनी इन नारियों के अन्य द्वारा इस तरह अत्याचार को सहन कर सकता है ?  लेकिन जिस तरह  जानवरियत उस क्षण उस पर सवार होती है विवेक शून्य हो जाता है , इन कल्पनाओं में नहीं पड़ता . और भी बेशर्मी तब देखने मिलती है . कुछ जीवों का जीवन हनन करने के बाद कानून के शिकंजे में आने पर जब अपनी मौत की सजा का भय दिखता है ,तो गिडगिडा कर दया याचना करता है . लेकिन यह  दया स्वयं कुकर्म करते समय अबला पर उसे नहीं  है
           
दूसरा कारण भी घिनौना ही है . देश की रक्षा को तैनात सीमा पर 2 फौजियों की अकारण दुश्मन सेना द्वारा हत्या कर दी गई . यही नहीं दयाहीनता चरम पर तब देखने मिली जब उनकी मृत शरीर के साथ भी बर्बर हरकत करते हुए एक का सिर काट , तथा दूसरे के अन्य  शारीरिक अंग काट गायब कर दिए गए . क्षत-विक्षत इन शवों को देख पूरा देश अपमान की ज्वाला से सुलग गया .  
परिवार जन अपने सपूत (या पति ) की शहादत से दुखी थे पर उनके शवों की दुर्दशा के विवरण उन्हें  मातम में गहन क्षोभ को बाध्य कर गए . जीवन भर ना भुलाया जाने वाला कष्ट उनके मान और मन पर लग गया .
 
इन दुखद घटनाओं से हमारे देश के कुछ घर आँगन में  तीन तरह के मातम दृश्य उपस्थित हुए / होयेंगे ..

प्रथम ... फौजी वीरों के शव जब घर पहुंचाए गए , गहन मातम छाया , दुःख की पराकाष्टा थी पर इन आंगन के साथ उस गाँव , प्रदेश में एक गौरव बोध था . शहीदों के दुःख पर आलिंगन कर सांत्वना देने अनगिनत लोग उमड़ रहे थे . समाचारों में श्रदांजलि का तांता लग रहा था . शहादत उन शहीदों को ही नहीं , उनके परिवार और उस माटी को अमर कर रही थीगौरव पूर्ण बलिदान इतिहास पृष्ठ पर अंकित होने वाला था  .

व्दितीय ... बेटी का शव घर पहुंचा था . परिजन और नगरवासी स्तंभित थे, अपराधी और व्यवस्था के  प्रति आंदोलित भी थे  . शव देख बार बार उस शक्तिहीन अबला पर इक्कठे कई मानव पुरुष भेष में जानवर की निर्दयता स्मरण हो आती थी . सांत्वना देने आगे आये लोग पिता-माँ को  दुःख से रोते देख  चुपाने के प्रयास में स्वयं रो पडते थे . समाज में कन्यादान से परलोक सुधरता है ऐसी आस्था प्रसिध्द है . घर परिवार अपनी बेटी के कन्यादान कर यह पुण्य हासिल करने की योजनायें बना रहा था . लेकिन अप्रत्याशित इस हादसे को देख जीवन भर के लिए दुःख का पहाड़ उनके सीने में समाया था . सब विचार मग्न थे . यह ना रहे थे इस तरह का दुःख भगवान किसी को भी ना दिखाए .

तृतीय ... कुकृत्य के समाचार के बाद उमड़े प्रतिरोध के जन सैलाब को संज्ञान लेते  न्यायालय , अभियुक्तों को वह सजा जो आज बहुत कम दी जाती है , सुना देता है . फांसी  पर झूलने  के बाद उनके शव लेने उनके परिजन आने में शर्मिंदगी अनुभव कर रहे हैं . यद्यपि उस शरीर से प्राण के साथ ही वह बुराई भी मिट गई है . अब वह शरीर इस योग्य नहीं बचा है , जो किसी नारी पर कोई अत्याचार कर सके .  शर्मिंदगी  के होते हुए भी कोख जाए के मौत पर उसके शव को दाह संस्कार  का कर्तव्य भी धर्म उचित है अतः शव लिया जाता है . प्रियजन की मौत पर संबल देने आने वाले पंच और परिचित अनुपस्थित हैं .  किसी तरह अंतिम संस्कार किया जाता है . पर अपमान और कलंक का अमिट  धब्बा जो पुत्र छोड़  गया ऐसे पुत्र का पिता -माँ होने का दुर्भाग्य किसी और को ना देखना पड़े . सभी ऐसी कामना करते हैं .   

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