Sunday, January 6, 2013

गौरव बोध




गौरव बोध
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                                 पद स्थापना नई जगह हुई . जिस अपार्टमेंट में रेंटल फ्लैट लिया . उसमे एक किराना व्यवसायी परिवार रहता था . परिचय हुआ तो उन्होंने पत्नी से उनकी शॉप से अच्छा किराना मिलता है , अतः वहां से लेने का आग्रह किया . आगे किराना वहां से लिया जाने लगा . एक दिन उसने पत्नी से कहा किराना अच्छी शॉप से लिया करेंगे , पत्नी ने पूछा क्यों ? उत्तर में कहा .. दुकान छोटी है यहाँ क्रय करने आने वाले दिन के लिए किलो ,आधा किलो या 100 gm लेने वाले छोटे लोग आते हैं भीड़ ज्यादा रहती है . पत्नी ने सहमति जताई . आगे किराना बड़ी ,प्रसिध्द शॉप से लिया जाने लगा. 

कुछ दिनों उपरांत उसने पत्नी से कहा ... सुनो ,तनु किराना पुरानी दुकान से ही लिया करेंगे . पत्नी के चेहरे पर असमंजस के भाव आये बोलीं ... अब क्या हो गया ?

वह बोला पड़ोस की भाभी को हर शनिवार वह एक स्टील की बकेट में 4-5 किलो का गरम नाश्ता ले जाते देख रहा था .समझ नहीं आता था कहाँ ले जाती हैं . एक शनिवार घर वापस आते मैंने देखा , भाभी एक फूटपाथ पर बैठे दरिद्र , भूखे लोगों को उनके प्लेट में बड़ी आत्मीयता से बकेट से नाश्ता परोस रही थी . यह भावना मुझे बड़ी प्रिय लगी . व्यवसाय सब करते हैं , आजीविका कमाने के लिए सब कुछ न कुछ करते हैं . अपने लिए और परिवार की फिक्र सब कर रहे हैं . लेकिन कुछ ही ऐसे आज दिखाई देते हैं , जो स्वयं और परिवार से ऊपर दूसरों के बारे में भी कुछ सोच रहे हैं .



तनु ने प्रश्न उठाया पर वह तो मंदिर के सामने अपने लिए पुण्य प्राप्त करने की भावना से ऐसा करती हैं .
वह बोला -- प्रेरित भले ही कोई भावना कर रही हो पर बेसहारा को कुछ सहारा तो वो कर रही हैं .. हम उनके शॉप से सामग्री खरीद कर कुछ लाभ का सहारा देने की भावना रखेंगे ... ताकि उनका परिवार यह पुण्य कर्म की निरंतरता रख सके ..
तनु ... पति का मुख , एक गौरव बोध से निहारने लगी ....


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