Saturday, January 5, 2013

प्रणय सम्बन्ध (क्षमा करें महानायकों )...

प्रणय सम्बन्ध  (क्षमा करें महानायकों )...


प्रणय सम्बन्ध बिलकुल ऐसा विषय नहीं जिसको बुरा समझा या कहा जाये  ...
यह प्राणी प्रकृति में सहज एक आवश्यकता है .
                     अन्य प्राणी की तुलना में , इस पर ज्यादा तार्किक मस्तिष्क मनुष्य को मिला है , जिसने जीवन में विवादों को टालने के लिए इन संबंधों के लिए कुछ मर्यादाएं निर्धारित कर एक "मानव सभ्य समाज "  की अवधारणा दी . जिस प्रकार उदर को भोज्य आवश्यक है , जो जीवन उर्जा देते हुए आयु सुनिश्चित करता है . प्रणय भी एक तन और मन की आवश्यकता है ,जो प्राणी जीवन क्रम बनाये रखता है . लेकिन जिस प्रकार भोजन करने और उसके विचार में मनुष्य सिर्फ प्रतिदिन 1 डेढ़ घंटा देता है , उसी प्रकार एक आयु सीमा में पहुँच ऐसे  मनुष्य का  कुछ समय इन संबंधों के लिए आवश्यक हो जाता है .

जिस तरह पूरा दिन रात सिर्फ भोजन विचार में लगाना उचित नहीं ,उसी प्रकार प्रणय चर्चा / प्रणय दर्शन के लिए पूरे दिन रात लगाना औचित्यपूर्ण नहीं होता है .

यौन अपराधों के बढने पर सभी चिंतित हो रहे हैं . सब नियंत्रित करने पर तर्क वितर्क कर रहे हैं . पर नियंत्रित क्या किया जाए जिससे कमी आये इस पर समझते हुए भी सब उसे भुलाये हुए हैं . सोचते हैं दंड भय और कड़ाई से पालन कमी लाएगा . अगर यह कमी हासिल भी की जाये तो लगता है अस्थायी ही होगी . क्योंकि व्यभिचार की बुराई फैलने का कारण अपर्याप्त व्यवस्था से ज्यादा कुछ दूसरा है .

                    80    के दशक में जन्मा आज का युवा बचपन से सरे आम वह दृश्य देखता आया है , जिसमें एक  पुरुष प्रणय याचना -- नारी से चुम्मा और प्यार देने के गीत गाता  हुआ करता है . ऐसे बच्चे ने यह भी देखा है गाने वाला वह पुरुष किस तरह पूरे देश वासियों के ह्रदय में बसता  है . जीवन में सफलतम कहला रहा है . और अरबों की संपत्ति अर्जित कर चुका है . उसे देश महानायक भी मानता है . फिर कोई  महानायक की नक़ल करते आज का युवा युवतियों पर फिकरे करता है ,तो क्या वह बुरा है?  जबकि यही करता हुआ दूसरा महानायक है .
                  कार्यालय यह विद्यालय में दिन के समय नेट पर शाम को दूरदर्शन और सिनेमा में तथा रात्रि मदिरा पार्टी में यौन विषयक चर्चा बहुतायात और दिन रात की अवधि में अधिकांश होती मिलेगी तो कोई भी दंड प्रावधान या  कड़ी व्यवस्था असरकारक होगी इस में संदेह जन्मता है .
किये जाएँ ये प्रावधान आपत्ति नहीं . पर अगर कोई इस देश को अपना या समाज को अपना मानता है . यह उस जनसमूह में खड़े युवाओं को अपना बेटा -बेटी या भाई-बहन  सा मानता है तो इतना जिम्मेदार अवश्य बने , "जो आचरण विनाश की ओर  ले जाता है " उस हेतु दुष-प्रेरित उन्हें ना करे और वह भी अपने 70 -80 वर्ष के जीवन के लिए ,  अपनी अति स्वार्थ-लिप्सा की कमी को लेकर .

महानायकों आपका जीवन अधिकतम 100 वर्षों या उस से कुछ ज्यादा होगा . पर भारत एक राष्ट्र या मनुष्य एक प्राणी नस्ल का जीवन करोड़ों वर्ष का हो सकता है यदि अपनी अनियंत्रित वासनाओं से आप पथगामी को दिग्भ्रमित ना करें तो ...

क्षमा करें महानायकों  ...

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