Tuesday, January 1, 2013

साहित्य सरोवर

साहित्य सरोवर
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आदर्शों को जीते थे और उच्च सिध्दांत जो पालन करते
साहित्य रूचि से अपनी करते वे सृजन प्रेरक साहित्य का

समूह में मिल सब ऐसे ,निर्मित एक सरोवर साहित्य करते
देश में छोटे छोटे कई होते थे ,ऐसे पवित्र साहित्य सरोवर

साहित्यकार खिलाते इन सरोवरों में रंग बिरंगे अनेक कमल
रह जागरूक कर्तव्य निभाते ,मनुष्य संतति प्रति सब अपने

देते भली सद-प्रेरणायें खिलाकर साहित्य कमल सरोवर में
कविता ,कथा और लेख रूप में होते थे कई रंग बिरंगे कमल

पढ़, देखकर  मंचन इनका लेते सब पथ प्रदर्शन जीवन का
दैनिक मनुष्य जीवन में ,दिखती भलाई और  सहज सरलता

आये जब पाश्चात्य देशों में निर्मित आधुनिक दर्शन साधन
साहित्य दिखलाया जाने लगा तब मिला इनमें विदेशी मसाला

नित देख चमक दमक इन साधनों पर प्रभावित हम होने लगे
धीरे धीरे हम भूले पढ़ना ,देखना और मंचन प्रेरक साहित्य का
खोयी लोकप्रियता साहित्य ने  हतोत्साहित हुए उच्च साहित्यकार
सृजन हुआ ओछे साहित्य का ,चहुँ दिशा फैलाई जिसने अपसंस्कृति

खिलते जो साहित्य सरोवर में थे ,उत्कृष्ट रंग के कमल के फूल
अश्लील व ओछे साहित्य के प्रदूषण से मुरझा जाते खिलने से पहले  

आडम्बर, प्रणय प्रमुख कर मोहक विज्ञापनों से किया प्रचार
धन की न कमी दर्शन साधनों में एक लगा दस बीस कमाते

दे बहुत पारिश्रमिक युवाओं को लिया उन्हें पाश्चात्य प्रभाव में
सम्मोहित कर दौड़ाया सबको चमकते दमकते सिनेमा की ओर

निर्मल थे जो साहित्य सरोवर ,हुए गंदगी और प्रदुषण सरोबार
विवश थे उच्च साहित्यकार क्योंकि उनका था सिध्दांत परोपकार

आदर्श-सिध्दांत वादी ,पूर्व पीढ़ी के साहित्यकार थे नहीं धनवान
जिनका होता साहित्य ही धन लेखक ,कवि हुए पैतरों आगे पस्त

साहित्य रचना से हटा ध्यान, हुई आदत फ़िल्मी ग्लेमर दर्शन की
सच्चे नायक बने कम अनुकरणीय तुलना में छद्म नायकों के

चला अतः समाज भ्रमित हो दिखलाई जा रही इस गलत दिशा में
दर्शन हुए जब आडम्बर के, बढ़ी जन आसक्ति प्रति आडम्बर के

आम शिकायत देती सुनाई , बुराइयाँ बढ़ रही प्रतिदिन बहुत सी
करते नक़ल आम हुआ देश में मदिरा और सिगरेट का सेवन
व्यसन जनित रोग बढे ,अनेक अस्वस्थ ,असमय प्राण गवांते
इन नशों के ख़राब प्रभाव में स्वयं और अन्य का चरित्र बिगाड़ा

करने से नक़ल आडम्बर की , बड़े इनमें जब बहुत ही खर्चे
ज्यादा धन कमाने की कामना में , ख़राब बहुत मार्ग अपनाए

ढोल दूर के सुहावने होते लगती मौज मजे दूर से आडम्बर में
देश भर के युवा दुष्प्रेरित होकर ,फिसल पड़े गलत इस पथ पर

चारों ओर समाज में अपने , हुआ हावी निज स्वार्थ सभी पर
परोपकार गायब अब समाज से , दिखती नहीं दया कहीं पर

'राजेश' कैसे करें साहित्य सरोवर निर्माण पुनः अब अपने देश में
निर्मूल कर सके जो बुराइयां और बनाये फिर भव्य देश को

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर रचना। अपनी सुसंस्कृति के प्रति कवि की अंतर्वेदना सराहनीय है।

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