Monday, January 7, 2013

2012- फेसबुक कहानी -2


2012- फेसबुक कहानी -2
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"बुराई विहीन मनुष्य समाज" की रचना में चुनौतियां के अपने आंकलन से स्वयं के ही सामने निरा मूर्ख सिध्द होने पर , इस दिशा में बढ़ते कदम ठहरने को जब हो रहे थे . अनायास अगस्त अंत में एक दिन मित्र सन्देश आया . अपरिचित को भी जोड़ने में कभी कोई कठिनाई नहीं लगी थी . उन्हें जोड़ लिया . कुछ दिनों में उन्होंने हिंदी साहित्य के कुछ समूह पर उसे आमंत्रित कर लिया . जिसमे एक समूह लघु कथा लेखन और दूसरा छंदमुक्त काव्य  का था .वह  अपने अपरिपक्व विचारों को किसी तरह से लिपिबध्द तो कर रहा था , पर इन दोनों ही विधाओं से कोई नाता नहीं था . विशेषकर काव्य कही जा सकने वाली दो पंक्तियाँ भी लिखना उसके लिए अत्यंत ही कठिन था .

पर समूह में सक्रिय रूप से भाग ले सकने के लिए कुछ इन शैलियों में लिखा जाना आवश्यक था . पहले कुछ लघु कथा लिखी जो लघु कथा कम निबन्ध से ज्यादा बने . पर उन फेसबुक मित्र की मित्रता निभाने का भाव बड़ा अनुकरणीय था . चाहे लो लिखा गया हो उसमें बड़ी से कोई शिक्षा पढ़ लेना और उसपर दाद देते हुए वे मनोबल बढाने में तनिक विलम्ब नहीं कर रहे थे . उत्साहित हो तब उसने छंदमुक्त काव्य लेखन के प्रयास आरम्भ किये .

समाज में सुख-शान्ति बढे ,यह किसी भी तरह के लेखन के मूल में स्वभाव के कारण आ ही जा रहा था . जब वह यह मानता (अपनी सीमित समझ से ) कि उसने अब बड़ी अच्छी रचना लिख दी है . पोस्ट करता तो प्रतिक्रिया ऐसी कहीं दिखाई ना देती . पर पुनः आभार उन मित्र का माना जो छंदमुक्त पर भी बड़े आत्मीयता से अच्छी टिप्पणियाँ देते . इस बीच संदेशों के आदान प्रदान में उन्होंने एक हिंदी लेखों का समूह भी निर्मित कर दिया और उसका एक एडमिन (कुछ में से ) भी बना दिया . इस मान के लिए अभिभूत तो वह हुआ , पर पिछला अनुभव एडमिन का अप्रिय रहा था . कुछ दिनों उपरान्त स्वतः उस विशेषाधिकार को त्याग दिया उसने .

ऐसा लगा लड़खड़ाते कदम सयंत हो रहे हैं . लगभग प्रतिदिन ही कुछ लिखा जाता और पोस्ट होता . नोटिफिकेशन की संख्या मित्र के उत्साहवर्धन नीति के तहत इतनी आ रही थी कि लेखन का क्रम चल सके .

पर व्यक्तिगत कुछ जीवन लक्ष्य के लिए संकल्पित हो  उन मित्र ने अपनी फेसबुक डीएक्टिवेट करने की सूचना दी . यहाँ आकर नोटिफिकेशन में कमी आई . विचार करने पर लगा कई असफल प्रयत्न के बाद भी बार बार यत्न से जीवन में सफल होने के कुछ उदहारण कुछ विभूतियों द्वारा समय समय पर दिए गए हैं . अतः बहुत अनुकूल कुछ नहीं देखते हुए भी आशावान रह वह जुटा रहना चाहता है . आशा है पुनः हाथ थाम , कंधे से कन्धा मिला आगे साथ बढ़ने वाले उन मित्र महोदय की  सक्रियता फेसबुक पर जल्द ही बढ़ेगी .
 
फेसबुक पर वह नहीं आता और लेखन के यत्न ना करता तो ना ही ऐसे कुछ विद्वानों से संपर्क सूत्र बनते . ना ही लेखन के यत्न में विचार रुपी मोती खोजने अपने अन्तर की इतनी गहराई में उतरता . ना ही मंथर गति से सही उसके आचार-विचार में सही दिशा में परिवर्तन आते . यह उपलब्धि व्यक्तिगत रूप से अनुभव कर संतोष का कारण तो बन रहा था .
 
पर सच्चा संतोष पाने का उसका स्वप्न अधूरा रहते वर्ष 2012 समाप्त हो गया था ... 
 
 "कैसे पतन की दिशा में अग्रसर हो रहे व्याप्त व्यक्तिगत आचार -व्यवहार को वह थामे ?" कैसे इस दिशा में कार्यशील महानायकों का साथ दे सके ? कैसे वह इनसे जुड़े ? और कैसे इन्हें अपने से जोड़े  ?ताकि कुछ के सयुंक्त प्रयासों से एक ऐसा ज्योतिपुंज निर्मित हो सके जिससे सच्चा  मानव पथ आलोकित हो  .. उस पर चलने और बढ़ने की जागृति सामाज में आ जाए ...
यह स्वप्न कब पूरा होना आरम्भ होगा ?

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