Wednesday, April 18, 2018

नेमत

नेमत ..

------

अमीना जी अचानक बीमार हुईं , शौहर घर पर नहीं थे। हम सामने पड़े या हममें उन्हें अपना खैरख्वाह दिखा यह हमें मालूम नहीं लेकिन उन्होंने हमें याद किया। उनकी मुश्किलात में हम काम आ सकेंगे या नहीं , खुद हमें पता नहीं था। किंतु सवाल नेकी का था . हमसे जो बन पड़ा हमने किया। हम नज़रिये से नारी हितैषी थे , हम उनकी मुश्किलों से दिल में करुणा रखते थे , हमें नारी पर ज़ुल्म या उनकी बेइज्जती सख़्त नापसंद थे। जब जब उनपर शोषण या उनके अरमानों का गला घुटते हम देखते हम बेइंतहा दुःखी होते थे। अमीना जी का बीमारी से दर्द लिया चेहरा , उस पर शौहर बिना चार बालिकाओं की फ़िक्र , और इन सबके कारण उनके दिल पर पड़ रहा बोझ , हमें उस दिन दिखा। उस दिन तय किया उनके लिए , उनके बच्चों के लिए अगर हम कुछ करने के मौके पा सके तो हम जरूर करेंगें।

खैर बिना जल्दबाजी के हम सहज दिनचर्या में रहते रहे। हालात कुछ ऐसे खुद ही तब्दील हुए। हमें और उनके परिवार में करीबी के मौके आ गए। जी हाँ , हमारे लिए ख़ुशी की बात अवश्य है , किंतु हमें सजग इस बात के लिए रहना है कि मौकों का प्रयोग इंसानियत को पुष्ट करने में लगाना है। हम दो बिलकुल ही भिन्न सम्प्रदाय से हैं . हम पर जिम्मा है कि हमें अपने अपने मज़हब को अपने अपने कौम को नेक साबित करना है.

हमें यह मिसाल पेश करना है कि हम अपने अपने मज़हब के दायरे में रहते हुए भी परस्पर सौहाद्र और मोहब्बत से ख़ुशहाल रह सकते हैं। हम दिलों में किसी के लिए नफ़रत रखने के बजाय मोहब्बत रखते हुए - मिली इंसानी ज़िंदगी की नेमत का बेहतर प्रयोग करते रहें . जब जाने का समय आये तब  इस दुनिया से इतनी बड़ी क़ायनात में कहीं और के लिए रुखसत कर सकते हैं।
हमें साबित कर देना है कि -

"हर इंसान की ज़िंदगीं , और इंसानों की ज़िंदगी को मदद पहुँचाने के लिए मिली होती है। इंसान से नफरत नहीं मोहब्बत के लिए मिलती है।" 

--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
19-04-2018

No comments:

Post a Comment