Saturday, April 7, 2018

चल जहाँ तू हमें ले जाना चाहती है ....

चल जहाँ तू हमें ले जाना चाहती है ....
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इक दिन हम मर जाते हैं। अनुमान है कि जब हम मर रहे होते हैं तब यदि होश में हुए तो ख्याल होता है कि कुछ वर्ष और जीते तो यह देख लेते - वह कर लेते ! किंतु कुछ वर्ष और मिलते और बाद फिर मरने का दिन आता है तब भी हमारा और जीने का मन फिर हो जाता है. ऐसे ना चाहते हुए भी हम एक दिन मर ही जाते हैं. यह जीवन यह दुनिया बहुत मन मोहक होती है। लेकिन विचारणीय बात यह है कि जिस दिन हम मरते हैं तब भी - उसके बाद यह सृष्टि (क़ायनात) अनंत समय के लिए कायम रहने वाली होती है। दुनिया अपने नित बदलते स्वरूप में भी हमेशा मनमोहिनी ही रही आती है. हमें मरने के बाद भी यदि -
1. अनंत वर्षों के लिए शेष जब यह दुनिया छोड़नी ही है, तब मरते वक़्त कुछ वर्षों के और जीवन की कामना रखते हुए , क्यों मरना??
2. अनंत वर्षों तक के निरंतर कायम रहने वाले मन लुभावन , में से थोड़े से मंजर और देखने की ललक क्यों करना??
3. एक ठीकठाक क्षमता के साथ जी ली उम्र में कर लिया जो उसके बाद अक्षम (मरते वक़्त हम बहुत फिट नहीं रहते हैं) होकर कुछ और वर्षों में हम बहुत कुछ तो कर सकते नहीं हैं , फिर क्यों और करने की कामना रखके मरना ??
4. जीवन कुछ वर्षों का और यह संसार अनंत वर्षों का है जीवन में कुछ भी देख लिया - कुछ भी कर लिया हमने तब भी वह दुनिया में जितना होगा उसकी तुलना में नगण्य ही होता है. ज़िंदगी में हासिल इसी दुनिया से - मरने पर छोड़ना इसी दुनिया में - तब अपने-पराये का इतना भ्रम क्यों रहे हमें ???
सब तथ्य चिंतन में रखते हुए - जितना छोटा या बड़ा है , हमारा मिला जीवन उसके हर क्षण को हम आनंद से जियें। जितने अधिकतम संभव हैं उतने मन चाहे हम कार्य करलें। जितना देख सकें - उतने को पूरे मन से देखलें हम। हाँ अवश्य इस सब में हमसे न्यायप्रियता अपेक्षित होती है. 
अनंत शेष रह जाने वाली बातों में थोड़ा और थोड़ा और की कामना हम त्याग दें। जब आये मौत सामने तो उसके कंधे पर अपनी बाँह डाल हम कहें उससे कि चल जहाँ तू हमें ले जाना चाहती है ..... 
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
08-04-2018

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