मै कौन हूँ??
-------------
मैं एक जानवर की तरह ही प्राणी हूँ - जिसकी मूल आवश्यकता मात्र जल, वायु एवं भोजन है। इतने पर ही मैं भी जानवर की तरह ही एक नियत उम्र तक जीवित रह सकता हूँ। किंतु मैं जानवर नहीं हूँ - क्योंकि
1. मैं जन्म लेते ही घर-परिवार में पाला-पोसा जाता हूँ।
2. मैं जानवर नहीं कि मुझे वस्त्र , पढ़ना-लिखना , मोटर गाड़ियाँ और वैभव आदि की जरूरत होती है.
3. मैं उस परिवार से - एक धर्म ,भाषा एवं देश की पहचान में सीमित कर दिया जाता हूँ.
4. जानवर के संघर्ष तो प्रमुखतया भोजन को लेकर होते हैं , लेकिन मेरे इनके अतिरिक्त - मान-प्रतिष्ठा , मजहब , भाषा और राष्ट्र इत्यादि को लेकर होते हैं.
5. मैं जानवर नहीं कि - मुझे एक नाम चाहिए होता है और एक सामाजिक छवि की भूख होती है.
6. मैं जानवर नहीं कि - मैं मुक्त यौन संबंध रख सकूं - मुझे मर्यादा का विचार रखना होता है.
7. मैं जानवर नहीं कि - मुझे मंजिल की चाह होती है.
8. मैं जानवर नहीं कि - मुझे परलोक और स्वर्ग-नर्क का विचार होता है।
और भी अनेक कारणों से जानवर , मनुष्य से ज्यादा स्वछंदता से जीवन जीता है. ज्यों ज्यों हम विकसित हुए हैं - त्यों त्यों अपने पर संकीर्णता ओढ़ते चले गए हैं.
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-04-2018
-------------
मैं एक जानवर की तरह ही प्राणी हूँ - जिसकी मूल आवश्यकता मात्र जल, वायु एवं भोजन है। इतने पर ही मैं भी जानवर की तरह ही एक नियत उम्र तक जीवित रह सकता हूँ। किंतु मैं जानवर नहीं हूँ - क्योंकि
1. मैं जन्म लेते ही घर-परिवार में पाला-पोसा जाता हूँ।
2. मैं जानवर नहीं कि मुझे वस्त्र , पढ़ना-लिखना , मोटर गाड़ियाँ और वैभव आदि की जरूरत होती है.
3. मैं उस परिवार से - एक धर्म ,भाषा एवं देश की पहचान में सीमित कर दिया जाता हूँ.
4. जानवर के संघर्ष तो प्रमुखतया भोजन को लेकर होते हैं , लेकिन मेरे इनके अतिरिक्त - मान-प्रतिष्ठा , मजहब , भाषा और राष्ट्र इत्यादि को लेकर होते हैं.
5. मैं जानवर नहीं कि - मुझे एक नाम चाहिए होता है और एक सामाजिक छवि की भूख होती है.
6. मैं जानवर नहीं कि - मैं मुक्त यौन संबंध रख सकूं - मुझे मर्यादा का विचार रखना होता है.
7. मैं जानवर नहीं कि - मुझे मंजिल की चाह होती है.
8. मैं जानवर नहीं कि - मुझे परलोक और स्वर्ग-नर्क का विचार होता है।
और भी अनेक कारणों से जानवर , मनुष्य से ज्यादा स्वछंदता से जीवन जीता है. ज्यों ज्यों हम विकसित हुए हैं - त्यों त्यों अपने पर संकीर्णता ओढ़ते चले गए हैं.
--राजेश चंद्रानी मदनलाल जैन
05-04-2018
No comments:
Post a Comment