Saturday, April 28, 2018

चाहिए नहीं किसी को कुछ किसी से - नफ़रत क्यूँ रखें
थोड़े परिचित बाकि अज़नबी - बस अज़नबीयत ही रखें

लंबी दूरी तय कर आगोश में खोने आई थी सरिता , समंदर के
आ मिली तो देखा कि कई सरितायें समाई हैं आग़ोश में , उसके

मिठास थी शीतल प्रवाहित आँचल में सरिता के
समंदर से मिलकर सरिता वह मिठास गँवा बैठी

माँ तो माँ है - गर्भ में अपनी बेटी को मार नहीं सकती
दुष्ट मगर दुनिया - स्वाभिमान से उसे पाल नहीं सकती

हम हर चर्चित किस्से - व्यक्ति की समालोचना करने लगते हैं
कभी नहीं खोजते अपने में संभावना कि खुद चर्चित हो सकते हैं

वक़्त का शुक्र - मिटटी का मैं , मुझे ऊँचा उठाता है
थका वक़्त तो - इक दिन मुझे मिटटी में मिलाता है

करना ठान ले तो अपंगता भी बाधा नहीं
जिजीविषा असंभव को संभव बना देती है
नारी जीवन में अपने चुनौती उठा उठा के
हुई सक्षम , असंभव भी करके दिखा देती है

ऐतबार जो तोड़ दे उससे शिकायत कैसी
होती इंसानियत तो वह तोड़ता ही क्यों

चाहत जिससे - उसकी ख़राबी हम माफ़ करते हैं
वजह यही - खराबियों ने ज़िंदगी में जगह ली है

इज्ज़त बचा पाना ही मुश्किल हो जाये
ऐसे समाज में भला नारी कैसे जी पाये















 

No comments:

Post a Comment