Tuesday, April 10, 2018

शंका , हम पर तुम्हारा करना वाज़िब है कि
ज़माने ने नारी का ऐतबार बेदर्दी से तोड़ा है

शंका , हम पर तुम्हारा करना वाज़िब है कि
ज़माने ने नारी का ऐतबार बेदर्दी से तोड़ा है

अपने जज़्बात हमारे लिए - आप दिल में ज़ब्त रखो
कौमी नफ़रत का बहाना न बनें - चाहत रूहानी रखो

कहे का भी ग़लत
सिर्फ हँस देने का मतलब भी ग़लत
निकाल लेता है ज़माना
चुप रहने को मजबूर कर देता है ज़माना

तसव्वुर में जाना-आना था
कहीं न कोई बंद दरवाजा था
फ़िक्र सलामती की लेकर
प्यार का इक आशियाना था

ज़माने की न फ़िक्र कहते हुए भी हम
ज़माने से अलग होते नहीं हम
ज़माने को ग़लत कहते हुए भी हम
ज़माने में ही शामिल होते हैं हम

रुत जाने - आने का सिलसिला चलते रहे बदस्तूर
मिली है ज़िंदगीं - जीने का जज़्बा तो रखना होगा






 

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