Saturday, April 7, 2018


हमें ख़ाक तो मौत करती है , इश्क नहीं
इश्क़ तो हसीं नियामत होती है , ज़िंदगी की

हमें ख़ाक तो मौत करती है , इश्क नहीं
इश्क़ तो हसीं नियामत होती है , ज़िंदगी की

औरों को परखना छोड़िये - परखना है तो ख़ुद को परखिये
कोई और इंसान क्यों न बना छोड़ - ख़ुद इंसान तो बनिये

उनकी आहट - उनके आने का सिलसिला बदस्तूर कायम रहे
इस ज़िंदगीं से हमारी - उनके अलावा बची कोई चाहत नहीं

जब से अपने दिल में - उनके अरमानों को जगह दी हमने 
बड़ा था दिल हमारा - फिर भी जज़्बातों को जगह न बची

तुम्हें जो मोहब्बत होती हमसे 
नफ़रत फिर हमसे  होती कैसे??

नफ़रत किसी दिन - मोहब्बत में बदल सकती जरूर
मगर है मोहब्बत तो - कभी नफ़रत हो नहीं सकती

तक़लीफ़ कोई किसी को हमसे नहीं होगी यूँ कि हम
औरों के गिरेबां से पहले अपने गिरेबां में झाँक लेते हैं

ज़ब गिरेबान में अपने झाँक लिया हमने
औरों के गिरेबां में झाँकने की आदत जाती रही

हमने किसी से शिकायत इस तरह करना छोड़ दिया कि
अपनी का मालूम पर उसकी क्या हैं - पता हमें होता नहीं

खामियाँ हम में देखने से पहले - नज़र अपने पर तुम डाल लेना
गुरुर तुम्हारा टूट न जाए - न कहेंगे कि हममें ख़ासियत क्या हैं





 

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