Sunday, May 31, 2015

भोग की वस्तु

भोग की वस्तु
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जीवन भर से परिवार के लिए करती माँ लगती जैसे बेटे से कहती है
जब से जन्मी स्नेह भाई से बहना रख ,लगती जैसे भाई से कहती है
पतिव्रता हो साथ बिताते समर्पिता पत्नी ,लगती जैसे पति से कहती है
पिता की लाड़ दुलारी प्यारी बिटियारानी, लगती जैसे पापा से कहती है

है हमारी भी कुछ इक्छायें कर दिखाना कुछ चाहते हैं
मन में भी हमारे सुंदरता है क्यों तन ही निहारे जाते हैं ?
रात नहीं जा सकते अकेले , बहुत से काम में बंधन हैं
हम निभते ,प्रेम रखते पुरुष से क्या इस हेतु पनिशमेंट हैं ?

निर्विकल्प पारिवारिक पुरुष असहाय प्रश्न समक्ष होता है
सात जन्मों के लिए जी- मरकर समाज सुधार शपथ लेता है

कहता माँ ,बहन ,पत्नी बेटी से सात जन्म बाद रिश्ते में मुझसे मिलना
हर जन्म में कुछ सुधार करते समाज में सात जन्म बाद दिन वे आयेंगे
रात सुनसान में नितांत अकेली होगी भी तुम ,तो पुरुष न तुम्हें छेड़ने आएंगे
तुम मनुष्य पुरुष जैसी ,तुम्हें भोग की वस्तु समझने के रिवाज विदा हो जायेंगे
--राजेश जैन
01-06-2015
https://www.facebook.com/narichetnasamman

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