Saturday, May 2, 2015

मुन्नी ,शीला ,जलेबी एवं चमेली

मुन्नी ,शीला ,जलेबी एवं चमेली
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अस्सी वर्षों में सामाजिक दृष्टि में खराबी का पॉवर (लेंस) (+1,-1) , से बढ़कर (+10,-10) यदि हुआ है तो कारणों को जानने /समझने में गंभीरता आवश्यक होती है। अस्सी वर्ष के इस समय में हमारे समाज में सिनेमा ग्रेजुअली ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। इसमें प्रस्तुत सामग्री में उत्तरोत्तर अश्लीलता बढ़ती गई है। 
पहले सिनेमा हाल में और अब घर घर में दर्शक इसके दर्शन प्राप्त कर रहे हैं। अश्लीलता दर्शन से ,बच्चे समय से पहले सेक्स अनुभूति करने लगे हैं। अन्य दर्शकों पर भी मानसिक , शारीरिक और दृष्टि में कामान्धता के दुष्प्रभाव पड़े हैं।
जब मुन्नी , शीला ,जलेबी एवं चमेली तो स्क्रीन पर टेलीकास्ट /ब्रॉडकास्ट के समाप्ति के साथ ओझल होती हैं। तब मुन्नी , शीला ,जलेबी एवं चमेली अभिनीत करने वाली और प्रस्तुत करने वाले , अपने काम के शुल्क से अपने आलीशान हो चुके भवनों में विलासिता और सुविधा के जीवन का आनंद और चैन का जीवन जी रहे होते हैं। उनके बँगलो पर दर्शक पहुँच नहीं सकते , लेकिन अश्लील दर्शन से पड़े दुष्प्रभाव दर्शक मन और आँखों में ऐसी वासना घोल देते हैं , जिससे उन्हें आसपास की हर युवती(नारी) में मुन्नी , शीला ,जलेबी एवं चमेली दिखने लगती है। ऐसे में हम सभी की बहन -बेटियाँ ,माँ एवं पत्नी आदि अपने दैनिक जीवन में ख़राब दृष्टि /नीयत से जूझने को विवश होती हैं।
सिनेमा के एक्साम्पल से समझने की आवश्यकता है , अब तो अश्लीलता और भी माध्यमों पर सरलता से उपलब्ध मिलती है। प्रतिष्ठा , धन और कई तरह के सम्मान से विभूषित हो तथाकथित सेलिब्रिटीज समाज में खराबियों फैलाती सामग्री बेच स्वयं सुरक्षित एवं प्रतिष्ठित होते हैं। लेकिन इनसे, टिकिटों/ केबल शुल्क / नेट शुल्क आदि रूप में अपना धन और समय व्यर्थ कर दर्शक स्वयं का वर्तमान / भविष्य बिगाड़ने के साथ ही सामाजिक सोहाद्र और शिष्टाचार बिगाड़ कर स्वयं को ही असुरक्षित करने की दुष्प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
मानना ,न मानना तो स्वतंत्र भारत में व्यक्तिगत अधिकार है , किन्तु जानना आवश्यक है। रेप , छेड़छाड़ , प्रेम संबंधों में छल , गृह कलह और बढ़ते डिवोर्स की जड़ कहाँ पर स्थित है।  नारी अपनी सुरक्षा और सम्मान की चुनौतियों को झेलने को क्यों ? विवश है। कहाँ? देश का विकास अवरुध्द होता है और युवा प्रतिभा कैसे? रोगी हो समाज उन्नति के परिणाम देने में विफल हो जाती है।
हम छोटे छोटे दोष , देख परस्पर आरोप -प्रत्यारोप में उलझ ,समाधान खोज लेने का भ्रम रखते हैं।
--राजेश जैन
03-05-2015

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