Thursday, May 28, 2015

पति -पत्नी

पति -पत्नी
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घर गृहस्थी सजाई जाती मानव जीवन जिसमें सरल होता है
पति -पत्नी बीच निजता के रिश्ते का इसमें संयोजन होता है

गृहस्थी बोझ उठाती पत्नी से साथ मधुर लगता प्रेम होता है
पत्नी अप्रिय ,'वह' लगे प्रिय ,कामुकता है ,नहीं प्रेम होता है

जिसे न उठाना बोझ कोई ,उसके नखरे तुम सह लेते हो
गृहस्थी बोझ उठाती पत्नी के साथ तुम अकड़े रहते हो

अनेकों 'वह' मिलती साथ कोई नहीं जीवन भर चलती है
अपनी तो पत्नी होती सामंजस्य रख साथसाथ चलती है  

छोड़ो रोना ,पत्नी के नाम से ,देकर दुहाई उनकी कमियों का
छोड़ो 'वह' का चक्कर रे पति ,सदोष तुम्हें ,पत्नी निभाती है
--राजेश जैन
28-05-2015

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