जयमाल पहनने में खड़े अकड़ते हैं
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हर्षित वर ,बारात सहित विवाह करने जाता है
वधुपक्ष को स्वागत में करबध्द समक्ष पाता है
दोनों पक्ष में नवयुगल के सुखद भविष्य हेतु
आशा-अपेक्षाओं का हिमालय खड़ा हो जाता है
जिन हारों से वर वधु विवाह सूत्र में बंधते हैं
दोनों वह जयमाल पहनने में खड़े अकड़ते हैं
आज जो झुके तो जीवन भर को झुक जायेंगे
भ्रम अहं से जीवनसाथ की शुरुआत करते हैं
अकड़ से संभव क्या ? साथ निभाना होता है
नम्रता से सुख देना संभव, प्यार पाना होता है
घर में अकड़ विनम्रता बाहर प्रदर्शित करते हैं
घर में उपलब्ध प्यार उसे ,बाहर ढूँढा करते हैं
अरमानों से जोड़े रिश्ते यों कटुता में चलते हैं
चकाचौंध में सुख पीछे मृगतृष्णा से भटकते हैं
छुपाछुपी ,अवैध प्रेम रिश्तों में छल चलते हैं
बाहर बनते छलिया ब्याहता को भी छलते हैं
--राजेश जैन
31-05-2015
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