आपसी सम्मान
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पुरुष नारी की नियति उन्हें साथ होना है
दीर्घ यह साथ तो काहे का रोना धोना है ?
आरोप-प्रत्यारोपों में क्यों जीवन खोना है ?
मधुरता के साथ से जीवन सुमधुर होना है
रख परस्पर सम्मान ,अपनों सा रहना है
पीड़ाकारी भाषा-व्यवहार से हमें बचना है
साक्षर मनुष्य होने का परिचय हमें देना है
व्यवहार ,भाषा,कर्मों में शिष्ट हमें होना है
कमजोर अगर नारी तो धर्म, सहारा देना है
उत्कृष्ट उनके गुणों को हमें संरक्षण देना है
सुरक्षा-विश्वास रीत निर्मित हमें कर देना है
उच्च संस्कार, रिश्तों में हमें मर्यादित होना है
परस्पर न शत्रु हम , मित्र भाव में हमें रहना है
प्रणय ही न एक, अनेक रिश्तों में हमें जीना है
मरने से किसी के कभी न भूचाल आ जाना है
मरा आपसी सम्मान ,आकाश ही खो जाना है
--राजेश जैन
13-05-2015
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पुरुष नारी की नियति उन्हें साथ होना है
दीर्घ यह साथ तो काहे का रोना धोना है ?
आरोप-प्रत्यारोपों में क्यों जीवन खोना है ?
मधुरता के साथ से जीवन सुमधुर होना है
रख परस्पर सम्मान ,अपनों सा रहना है
पीड़ाकारी भाषा-व्यवहार से हमें बचना है
साक्षर मनुष्य होने का परिचय हमें देना है
व्यवहार ,भाषा,कर्मों में शिष्ट हमें होना है
कमजोर अगर नारी तो धर्म, सहारा देना है
उत्कृष्ट उनके गुणों को हमें संरक्षण देना है
सुरक्षा-विश्वास रीत निर्मित हमें कर देना है
उच्च संस्कार, रिश्तों में हमें मर्यादित होना है
परस्पर न शत्रु हम , मित्र भाव में हमें रहना है
प्रणय ही न एक, अनेक रिश्तों में हमें जीना है
मरने से किसी के कभी न भूचाल आ जाना है
मरा आपसी सम्मान ,आकाश ही खो जाना है
--राजेश जैन
13-05-2015
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