Sunday, May 17, 2015

नारी -पुरुष अनुपात

नारी -पुरुष अनुपात
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माँ तो बेटे या बेटी दोनों से समान ममता रखती है। लेकिन समाज जो हमसे बना है , वह बेटी को सुखद जीवन की सुनिश्चितता नहीं देता है। ऐसे में माँ ( जो पहले किसी की बेटी भी है ) का चिंतित रहना सहज है। समाज हमसे है - समाज बदलना चाहिए , हमें लगता है तो हम स्वयं बदलें।
नारी को बुरी दृष्टि से न देखें , नारी से छेड़छाड़ न करें , नारी पर कुकृत्य न करें , कन्या भ्रूण या पुत्री हन्ता न बनें , दहेज को लेकर हत्या न करें , गृह हिंसा न करें। नारी को बाहर सुरक्षित और सम्मानीय वातावरण दें , जिससे वह विश्वास कर पाये कि वह भी एक मनुष्य ही है। अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरी करने के लिए बिना संकोच कदम बढ़ा सके। जिस दिन वह सुखी होगी - उस दिन ही हम सभी सुखी हो सकेंगे।
 नारी - हमारी नानी , दादी , माँ , बहन और बेटी भी है। इन सबने हमारे हित की कामना की है। हमारे लिए अपने सुख-चैन के भी त्याग किये हैं। जब हम उन्हें सुखी रखने में समर्थ होंगे - तब सच मायने में हम सुखी होंगे।
 जब हम नारी से अपने इन रिश्तों की बात करते हैं , उसी समय , हमें यह ध्यान भी रखना होगा कि जिस युवती आदि पर हम बुरी दृष्टि से रख , अवैध दैहिक संबंध का मंतव्य रखते हैं , वह (युवती) हमारे जैसे ही बहुतों से इन रिश्तों में पिरोई होती है। उससे भी ,उनके परिजन वही सब अपेक्षा ,सम्मान और मर्यादा रखते हैं , जो हमारे परिवार की नारी सदस्या से हमें अपेक्षित होते हैं।
यह स्वार्थ की हद है ,हमारी दुष्टता /क्रूरता है ,जब हम अपने यहाँ बेटी को जन्मने न दें , जन्मे तो मार डालें , या भटका दी गई हो तो गला घोंठ दें . और दूसरे ने जिन्होंने बेटी को जन्मा -बड़ा किया है उनकी बहन -बेटी पर हम वह अपराध करें , उनका वह अपमान करें , जिसकी अपनी बेटी पर कल्पना मात्र से हम हत्यारे हो जाते हैं।
 हमें - छिछोरा , छली , कुकर्मी , कामी ,लालची नहीं , मनुष्य बनना चाहिये। मनुष्य वह है , जो दूसरों के लिए जीवन के वही मार्ग प्रशस्त करता है , जैसे अपने जीवन के लिए चाहता है। हम नारी के चेतना , सम्मान ,प्रगति और सुखद जीवन के मार्ग प्रशस्त करें। उन्हें जीवन के पूरे अवसर दें। ऐसा होने से बिगड़ रहा नारी -पुरुष अनुपात भी ठीक किया जा सकेगा ।
--राजेश जैन
17-05-2015

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