Monday, May 4, 2015

स्मृति पापा की

स्मृति पापा की
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स्मृति है उन बाँहों की ले जिसमें हमें झूला झुलाया करते थे
स्मृति है उन राहों की ऊँगली थाम चलना सिखाया करते थे

विद्यमान वे आँगन जिसमें किलकारी से खुश हो जाया करते थे
विद्यमान वे बाजार-दुकानें जहाँसे ला खिलौने खिलाया करते थे

आते हैं फल आज भी , जिन्हें टोकरों से ला खा-खिलाया करते थे
आते हैं फेरीवाले -ठेले जिनमें से खरीद चटपटा खिलाया करते थे

आते हैं दिन याद स्वयं ही हमें स्कूल छोड़ने जाया करते थे
आते हैं दिन याद स्वयं ही वाहन चलाना सिखाया करते थे

होते व्यस्त लेकिन गुण-पढ़ने की प्रेरणा बन जाया स्वयं करते थे
होते व्यस्त लेकिन दुर्गुणों में न जायें हम निगरानी स्वयं करते थे

क्लास दर क्लास हमारी सफलता से खुश हो जाया करते थे
इंजीनियर हुए हम पर हमसे ज्यादा स्वयं खुश होया करते थे

स्मरण है हमारे विवाह पर गर्व अनुभूति के साथ बहू लेकर आये थे
स्मरण है जब हुई पोती तो प्यार से पलना वॉकर साइकिल लाये थे

सारा जीवन साथ थे
सबसे बड़े हितैषी थे
बुरी लगी दुनिया अब
जिसमें आप नहीं थे

अक्षम ऐसी ज़िंदगी क्यों ?
हम बचा नहीं सके क्यों ?
जीवन ऋण लादा अपने पे
चुकाने में असमर्थ क्यों?

सामर्थ्यवान बना कर
पापा आप जो चले गए 
सामर्थ्यवान होते हुए ,हैं
अनाथ जो आप चले गए
--राजेश जैन
04-05-2015
 

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