Tuesday, January 30, 2018

मैं मुस्कुराना ही चाहता हूँ कि - देख तुम खुश होते हो
क्या करूँ मगर , आँखें मेरी बग़ावत करती हैं - साथ नहीं देती हैं

इंसान अगर अच्छा कोई - मज़हब न देखना तुम
पैदा पहले इंसान ही होता - मज़हब ओढ़ लेता है

औरों को दर्द देता - मज़हबी वह रंग बदल लो तुम
इंसान पैदा होता कोई - इंसानियत से जीने के लिए

सब मज़हब हमें प्यारे हैं - अनुयायी अगर मोहब्बत बाँटें
नफ़रत की चिंगारियाँ फ़ैलाते - मज़हबी ऐसे , इंसान हैं??

अच्छा ही लगे तुम्हें - ऐसा हर बार लिख न सकेंगे
परिवेश का फ़र्क है - ख़यालात तो कुछ अलग होंगे

सर्वहिताय मंशा रख - काम हम दोनों करें
तरीक़े भिन्न मगर - हम इंसान नेक होंगे

ख़्याल उसका - हमारे दिल से जाता ही नहीं
इसलिये हर जग़ह नज़र उसकी - देखती हमें लगती है

रियासत ,विरासत , रीवायते की फ़िक्र अलग करके - इंसानियत से जी ले अगर
मुसाफ़िर का - ज़िंदगी का यह हसीं सफ़र - सुहाना बन जाएगा

गुलज़ार मंज़र भी कोई दिलख़ुश न करता कोई
इंसान में मोहब्बत अगर , जन्मज़ात होती नहीं

 

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