Friday, January 12, 2018

मददगार कोई चेहरा कब - हैवान हो जाये
महिलायें और बेटियाँ इसलिये - एहसान से कतराती हैं

उम्र एक आई थी - छेड़ना भी तेरा ख़ुशगवार होता
बचते रहे तुझसे हम कि - तमाशा बना चल देते तुम

मोहब्बत जताने वालों की नज़र - हुस्न पर अटक जाये कब
मोहब्बत की तलाश में जो - ज़हीन औरत एक , मर्दों से कतराती है

जीना ही हम चाहते थे - जीना ही वो चाहते थे
जीने के अपने तरीक़े में हमने - जीना उसका मुहाल कर रक्खा है

फेसबुक के मसालों में - मिर्ची की तरह शामिल हैं हम
किसी को अच्छे - किसी को बहुत तीखे लगते हैं हम

हँसते हँसते ही - अपनी बात कह जायेंगे , हम
समझना इसे बुराई किसी और की - और अपनी सुधार लेना तुम

पेशकश मेरी - न तो कोई शायरी ही - न कोई कविता है
औरों के लिये जी लेने का - मगर एक चुनिंदा सलीक़ा है


हाँ में हाँ न मिलाते तो - पसंद नहीं आते हैं लोग
बात पर हमारी है - हाँ में हाँ मिलाना जरूरी नहीं

गलत ना किया उसने - छोड़ के हम को
हमने ही कब समझा था - इंसान उस को

कदमों के निशां देख - तुम बढ़ जाना न उस पर
आज लोगों के क़दम - राहे - नफ़रत पर बढ़ते हैं

तेरी ज़िंदगी की ग़ज़ल - अधूरी यूँ रह गई कि
वादा समानता का था - पर चलने तेरी नहीं दी

आधुनिकता के सैलाब में प्रतिरोध नहीं बनता है
चलना भी ना चाहें तो भी धकियाये चले जाते हैं\

परोपकार का एक भी ख़्याल - ज़ेहन में क़ायम है
सुन ये दोस्त मेरे - तेरी ज़िंदगी जीने के लायक़ है

क्या तकलीफ़ है - अपने अंदरूनी ज़िस्म में उसे
बेख़्याल इससे रह - हमें तो अपनी ही पड़ी है


मोहब्बत में जिये - चार दिन भी बेहतर हैं
पूरी ज़िंदगी भी क्या - मोहब्बत जिसमें नहीं

खुलूस , मोहब्बत और मुरव्वत हो राजेश , तुममें
यह दौर भी तो देखे कि इंसान , कैसे होते हैं

 

No comments:

Post a Comment