Saturday, January 20, 2018

कोई साथ नहीं देता है - 'कोई साथ' नहीं रहता है
है ज़िंदगी मेला जिसमें - भ्रम आते जाते रहता है


कि साथ मेरे सब हैं - भ्रम जितने दूर तक बना रहा
ज़िंदगी का उतना सफ़र मेरा - ख़ुशनुमा गुजर गया

कि वक़्त आ गया अब - साफ़ नज़रों से ज़िंदगी को देख लूँ
कि साथ का भ्रम ख़ुशनुमा है - क़ायम इसे ताउम्र को कर दूँ



जिन्होने जिस्म को जाना - हमारी रूह को जाना नहीं
चाहे हों हमारे अपने ही - उनके लिए हम अजनबी हैं

जिस दिन रूह को अपनी - आप जान लोगे
उस दिन साथी मेरे - तुम मुझे पहचान लोगे

ख़ुद को तू भी - सिकंदर ना समझ
आज तेरा ग़ुलाम है - वो कल सिकंदर हुआ करता था


 

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