Monday, January 15, 2018

एक तो ऐसा लिख दूँ कि औरों का दिन बन जाये
अपना दिन बनाने की फ़िराक में तो सारा ज़माना है

दो अल्फ़ाज़ मोहब्बत के - मुस्कुरा के मैं बोलूँ
कि यहाँ हर कोई नहीं - जो मेरी दौलत का मोहताज़ है

छोड़ूँ मज़हबी मैं कहना खुद को
 गर भगवान का नाम ले छल करूँ - अल्लाह का नाम लेकर मार दूँ

जो नहीं कहते तुम - वो ग़र हम समझते हैं
तुम्हारी हमसे मोहब्बत को - लोग ग़ुनाह कहते हैं

सुकून में भी हूँ - होश में भी मैं हूँ
मोहब्बत हुई मुझे - वो मोहब्बत मुझसे करता है

दिन बदलें मगर - दिल न बदले ये कभी
रिश्ते जो हसीं लगते हैं - बोझ लगें न कभी


 

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