Thursday, January 4, 2018

02 जन 2018

एक कहानी ..
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पहचान ले मुस्कान में छिपे दर्द
अब ऐसी नज़र कहाँ मिलती है

उन्हें मुस्कुरा कर दर्द छुपाना आता था
नादान हम उन्हें खुशहाल समझते रहे

किसी के दर्द को मजाक में ज़माना उड़ायेगा
मुस्कुराना- दुःख दर्द का इजहार बन जायेगा

मैं मुस्कुराता हूँ जनाब - ख़ुद के ग़म कोई नहीं
ज़माने के दुःख दर्द से दुःखी हो - मुस्कुराता हूँ

मदद जब उस दुःखी की - कुछ नहीं कर पाया था
लिखने बैठा तो - कलाम में आँसू टपकते पाया था

चला जाऊँ तब - ओ दुनिया मुझे असफल नहीं कह देना
दौलत से बेपरवाह - मगर दर्द पहचानने में सफल था मैं

रुआँसी मिली - बहुत समझाया मगर नहीं रुकी
तीन तलाका दुखिया वह - भेड़ाघाट से कूद पड़ी

बचा लिया उसे - कुछ गैर मगर काफ़िर मर्दों ने उसे
मोहतरमा वह - मुझ काफ़िर की नज़र में हलाला थी
--राजेश जैन
02-01-2018

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