Saturday, June 29, 2013

प्रकृति परिवर्तन से आपदा ?

प्रकृति परिवर्तन से आपदा ?
------------------------------
पवित्र धाम विशेषकर केदारनाथ में अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा आई . वहां सड़क (और व्यवस्थाओं ) , मंदिर और बसे ग्रामों को तो क्षति तो हुई ही , वहाँ के निवासी और श्रध्दा से दर्शन को पहुंचे तीर्थ यात्रियों को प्राण तक गंवाने पड़े . लोग अपने परिजनों से बिछुड़े . सहनशीलता की सीमाएँ तो तब टूट गयीं . जब चलने की ताकत ना रह जाने से बूढ़े माता -पिता को मरणशील दशा में ही छोड़ शेष परिवार लाचारी में वापिस लौटा (ना लौटते तो उनके अतिरिक्त कुछ और वहीँ मारे जाते ) .
सेना देश और समाज सेवियों ने स्वेच्छा से जो सहायता की जा सकती थी उसके लिए अथक परिश्रम ,सेवा भाव और साहस प्रदर्शित किया किन्तु वह अपर्याप्त ही  रहा .

विभिन्न मंच ,समाचारों से कई तरह के टिप्पणियाँ आईं . सिर्फ दो ही यहाँ उल्लेख करूँगा 

1 . कहा गया "जिनकी मौत धाम पर होती है वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं" .. जो परिजन खोकर वापिस लौटे या जिनके परिजन गए तीर्थ को और वापिस ना लौटे उनके सीने पर जो दुखों का पहाड़ टूटा , जिन्होंने वहाँ मौत की विकरालता को प्रत्यक्ष देखा .वे शेष जीवन भर उसकी अप्रियता को भूल जाना चाहेंगे पर भूल ना पायेंगे . उनको इस तरह प्राप्त मोक्ष का विचार भी शायद ही कोई संतोष दे सकेगा .
2. कहा गया "मानवीय छेड़छाड़ ने वहाँ की प्रकृति को बदला इस कारण भीषण आपदा आई" . बात की सत्यता असत्यता पर कोई प्रश्नचिन्ह  नहीं लगाना चाहता . पर आई विपदा ने जिस बात से पीड़ितों को और  संवेदनशील मानवों को ज्यादा व्यथित किया , वह प्रकृति के परिवर्तन से ज्यादा परिवर्तित होती मानवीय प्रकृति थी .

# जब वहाँ मानव प्राण गवाँ चुका था ... कुछ लोग उनके शरीर(और वस्त्रों ) से आभूषण और धन खोज रहे थे और उतार रहे थे  .
# लोग रोग के शिकार और घायल हो गए थे ,भूखे थे ...उनसे  अन्न ,जल और दवाओं के लिए सैकड़ों गुना ज्यादा धन  की मांग कर ये चीजें दी जा रही थी .
# तीर्थ दर्शन को पहुँचे विपदा में फँसे जब अपने परिजनों को अपनी स्थिति का सन्देश देना चाहते थे तब उनके दो चार मिनट की सेल फ़ोन  से बात की कीमत हजार रुपये तक वसूल की जा रही थी .

लेखक के पास इसकी कोई पुष्टि के साक्ष्य नहीं हैं  अतः ये बातें झूठी और आधारहीन है तो प्रसन्नता ही होगी . पर यदि इनमें सच्चाई है तो कहना पड़ेगा मनुष्य की प्रकृति में दूसरी बार परिवर्तन आ रहा है .

एक ... आदिकाल में वह जंगलों में जानवरों के साथ उन जैसा रहता था तब उसमें उन जैसी पशुता ही थी . धीरे धीरे बदल कर वह  मानव हुआ और उसने जीवन में जिन आचरण और सिध्दांतों को अपनाया वह मानवता कहलाई .
दो ..  मानवता सीख कर अब पुनः उसकी प्रकृति में परिवर्तन दिखाई दे रहा है .. भय है मानवता तज पुनः पशुता ना अपना ले .

यह भय हमें यदि सताता है तो हमें उन कारणों की जड़ में जाना होगा जो इस तरह प्रकृति परिवर्तन को दुष्प्रेरित कर रहे हैं .
उनका सुधार किये बिना समाज सुखी नहीं होगा .फिर हम भी सुखी ना हो सकेंगें क्योंकि कितने हैं जो अन्य ग्रहों पर पहुँच कोई अन्य सुखी मनुष्य समाज रचना कर सकेंगे ...

--o--

No comments:

Post a Comment