Thursday, June 20, 2013

बच्चों की प्रतिभा उपलब्ध समय और हमारे दायित्व -3

बच्चों की प्रतिभा उपलब्ध समय और हमारे दायित्व -3
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कल के लेख के अंत में  बात शोषण की घटनाओं से आंदोलित होने पर आई थी . दिसम्बर -12 में दिल्ली में और बाद में देश में अन्य स्थानों पर युवतियों और मासूम अबोध बच्चियों पर शोषण की घटनायें जिनमें पीड़िताओं को प्राण तक गँवाने पड़े की चर्चा पूरे देश में हुईं . संस्कारी और सज्जन पुरुष देश के ही दानव बने पुरुषों जिन्होंने वासना में अंधे होकर ये अपराध और अत्याचार किये को देख अत्यंत शर्मिंदा हुए . अत्याचारों के क्रम के ना थमने से आंदोलित हुए .

देश भर में विरोध प्रदर्शन में महिलायें, कॉलेज जाती बेटियों और युवा और प्रबुध्द पुरुषों ने करोड़ों की संख्या में भाग लिया .
नारी पर अपराध के विरोध में  इतनी जागरूकता अच्छा संकेत है . तब भी एक बात लिखना आवश्यक है .

" दूसरों की जिन बुराइयों के विरोध में हम आंदोलित थे और प्रदर्शन कर रहे थे . उसी तरह की स्वयं की बुराई का हम विरोध नहीं कर सके हैं " .  

यदि करते तो समाज से बुराई कम हो जाती . क्योंकि आन्दोलन रत नागरिकों की संख्या यदि एक करोड़ भी थी तो बहुत थी जो देश और समाज को बदल सकती थी यदि वह विरोध सच्चा होता . लेकिन अगर वह सिर्फ दिखावे तक सीमित है तो उससे कोई दूसरा बुरा सुधर जाएगा ऐसी अपेक्षा हमें निराश करेगी . अगर अपने में बुराई विरोध से सुधार में हम असफल हैं तो वही कठिनाई दूसरे को भी होगी जिससे वह अपनी खराबी मिटा नहीं पाता है .

नारी पर बहुत तरह के अत्याचार और शोषण देश और समाज में जारी हैं . वह घर से बाहर असुरक्षित है. वैसे बहन-बेटी और माँ तो हमारे देश और समाज में पूज्या मानी जाती है पर  घर से बाहर आज जिस दृष्टि से उसे देखा जा रहा है वह कहीं इस सम्मानीय मान्यताओं से मेल नहीं खाता .

मान्यता और कर्म -आचरण में दृष्टव्य विपरीतता के कारणों के जड़ में जाना होगा . मुझे लगता है आज के आधुनिक माध्यमों पर इस तरह की सामग्रियों की अधिकता है जो हमारी दृष्टि और नीयत बिगाड़ती है . ऐसे लोग इन माध्यमों पर सम्मानीय और सफल के तौर पर दिखाये जा रहे हैं . जिनके कर्म और आचरण समाज मर्यादा के अनुसार नहीं हैं . इनका सम्मान और सफल दिखाया जाना हमें दिग्भ्रमित कर देता है . वर्षों से माँ-पिता हमें अपने त्याग से जो संस्कार दे पाते हैं वे इनके प्रभाव में नष्ट हो जाते हैं .

छद्म लोग नायक (Hero ) जैसे ना दिखाये जायें यह व्यवस्था लानी होगी . बुराई समाप्त या कम करने के प्रति हम यदि गंभीर हैं तो यह बात भली प्रकार समझनी होगी कि बुराई के वाहक को हम हीरो जैसे देखेंगे तो बुराई पुष्ट होगी ना कि कम .

अब विचारने की बारी हम सब की है . कौन हैं वे जिनका व्यक्तित्व बना तो बुराइयों की अधिकता से है पर देश के जन मानस पर हीरो बतौर छाया है ...

बच्चों की प्रतिभा, उनका  उपलब्ध समय व्यर्थ ना जाये, वे दिग्भ्रमित ना हों इस हेतु यह हमारा  दायित्व है . ये बात दृढ़ता से देश के तथाकथित नायकों (हीरो)  को बतानी होगी ताकि वे भी मर्यादा में आयें . और अपने प्रभावों को पूरी वर्तमान पीढ़ी को मिस -गाइड (पथ भ्रमित ) करने में ना लगायें . इस देश से मिले मान के बदले में देश और समाज से बुराई मिटाने के लिए अपने दायित्वों को समझें और उसे निभाएं ...

--राजेश जैन 
21-06-2013

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