Monday, June 17, 2013

समाज की ड्राइविंग सीट

 समाज की ड्राइविंग सीट
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वास्तव में अपने बच्चों को facebook बहुत समय देता देख मैंने ज्वाइन किया था . फिर नेट और फेसबुक पर ख़राब पोस्ट और बातों की बाहुलता देखी तब  इसे निष्प्रभावी करने के लक्ष्य से अपनी ओर से कुछ अच्छा नियमित पोस्ट का संकल्प किया . इन पर लाइक या कमेंट्स का अभाव रहा .इससे लिखने के प्रति उदासीनता उत्पन्न हो सकती थी लेकिन विचार उपरान्त उसे मन में से निकाल दिया . अन्यथा जो थोडा अच्छा हमारी दृष्टी से fb पर गुजरता है वह भी नहीं बचेगा . विचार कीजिये फेसबुक पर हमारे और समाज के बच्चे बहुत समय व्यय करते हैं . उन्हें कभी कभार हम जो उपलब्ध कराते हैं उससे भी वे वंचित रहेंगें तो सद्प्रेरणा के स्तोत्र उन्हें और कम हो जायेंगे . अतः निज अपेक्षा शून्य रखते हुए अपना अच्छा योगदान मानवता और समाज हित में जारी रखना औचित्य पूर्ण है .

हम समझने के लिए रक्त और पसीना पर गौर करें . दोनों ही जीवित शरीर में आवश्यक हैं 
रक्त को सद्कर्म जैसा देखें . (रक्त गहन है जब तक चोट या  ना हो अन्दर निरंतर रहता है )
पसीने को उपभोग कर्म मानें . (पसीना हल्का होता है शरीर रोमछिद्र से इसे श्रम की स्थिति में बाहर करता है )

जिस शरीर में रक्त का संचार विद्यमान है . पसीना उसमें आता है .
सद्कर्म हमारे समाज रुपी शरीर में संचारित होते हुए समाज को जीवित रखते हैं . जबकि उपभोग कर्म पसीने के रूप में समाज की सतह पर आ हवा से स्वतः सूख जाते हैं .

फेसबुक भी एक वर्चुअल समाज है . जिसमें साहित्यकार , विचारक और वरिष्ठ अनुभवियों की पोस्ट सद्कर्म भांति प्रेरणा के लिए मिलती है . हमारे युवा जिनके समक्ष आगे पूरा जीवन है आँखों में सुविधा ,मजे के अनेकों स्वप्न तैर रहे हैं . वे मीडिया पर बहुतायात में उपलब्ध हल्की बातों को  मानव जीवन का यथार्थ मान रहे हैं .फेसबुक पर इस तरह की सामग्री में ही रूचि भी लेते हैं और अपनी ओर से इसमें और योगदान भी देते हैं . यह सब सहज है .

फिर इन बातों का अतिरेक सुखी समाज काया में रोग उत्पन्न कर सकता है . रक्त की कमी ना हो अतः हममें से जिन किसी के पास भी गहन विचार और प्रेरणा है फेसबुक पर शेयर करना जारी रखें . 
आधुनिकता बहुत तेजी से आई है  मानवता और समाज हितकारी दिशा में आधुनिकता को मोड़ना बुध्दिजीवियों का दायित्व है .अतः ड्राइविंग सीट पर हमें आकर बैठना और जमे रहना है .
अगर हमारे लक्ष्य निस्वार्थ के हैं तो युवाओं को किसी ना किसी दिन ये आकर्षित करेंगे .और वो जब हमारे अवस्था में आयेंगे तो यह रोल ग्रहण कर सकेंगे ...


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