Tuesday, June 25, 2013

राष्ट्र का स्वाभिमान

राष्ट्र का स्वाभिमान 
----------------------
एक अधिकारी के दो मातहत होते हैं ,जो उन्हें प्रिय हैं ऐसा दूसरे मानते हैं .
 एक का गुण कर्तव्य निष्ठा से कार्य करने का है .
 दूसरा अधिकारी के व्यक्तिगत अपेक्षाओं को ध्यान रख उसे पूरा करने की गतिविधियों में तल्लीन रहता है .विभागीय कार्य सिर्फ दूसरों को दिखावे के लिए करने की अदाकारी करता है .

 अधिकारी स्थान्तरित होकर चला जाता है . 
कुछ वर्ष बाद भी दूसरे के सम्बन्ध अधिकारी से मधुर बने हुए हैं . 
जबकि पहला अचानक एक दिन स्टेशन पर अधिकारी के समक्ष पढता है तो उन्हें अभिवादन करता है . अधिकारी के चेहरे पर सोचपूर्ण भाव हैं वह पहचानने की कोशिश कर रहा है .. कौन है यह ?

दो तरह के कर्मचारी और अधिकारी सार्वजनिक संस्थाओं में हैं . 
एक कर्मनिष्ठ हैं जो तंत्र(System), (संरचना-Structure) की मजबूती के लिए समर्पित हैं . 
दूसरे बॉस के हितों को पुष्ट कर अपने हित बिना तंत्र(System) के लिए कार्य कर बचा रहे हैं . ये तंत्र(System) को नहीं बॉस और स्वयं के साथ गलत परम्परा को पुष्ट कर रहें हैं .

पहले बिरले होते जा रहे हैं जबकि दूसरे अधिसंख्य हो गए हैं .

गलत परम्पराओं के पुष्ट होने से ही केदारनाथ सहित पवित्र अन्य धामों पर आई विपदा के बीच पीड़ितों को राहत देने के लिए सक्रियता में कमी परिलक्षित हुई जबकि वहाँ लूटपाट और दुराचार तक की घटनाएं हुईं .

इससे बड़ी विपदा जापान ने झेली लेकिन वहाँ इस तरह की दुखद अमानवीयता का कोई कृत्य नहीं हुआ.  हमारे से छोटे राष्ट्र जिसने हमारे देश से गए धर्म और संस्कृति को अंगीकार किया है, का तंत्र ऐसे कर्मियों से बनता है जो राष्ट्र और सर्वहित को पुष्ट करते हैं .
तभी वह विश्व में स्वाभिमान से खड़ा है .

अपने बारे में विशेषण ना लिख आप को विशेषण पर विचार करने कहता हूँ ....
सार्वजनिक हितार्थ संरचनायें कैसे मजबूत होंगी ?

No comments:

Post a Comment