Tuesday, June 18, 2013

बच्चों की प्रतिभा उपलब्ध समय और हमारे दायित्व

बच्चों की  प्रतिभा उपलब्ध समय और हमारे दायित्व 
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भ्रमण में आज पीछे 3-4 किशोरियों का ग्रुप था जिनके वार्तालाप कुछ मुझे भी सुनाई आ रहा था . जिस अंश ने लेख को प्रेरित किया वह उल्लेख कर रहा हूँ .
एक .. तू छुट्टियों में कौनसी क्लास (कोर्स) कर रही है .
दूसरी .. कहीं नहीं जा रही हूँ .
एक ... मै तो क्लासिकल नृत्य क्लास जा रही हूँ . तू भी चल ...
दूसरी .. नहीं , पापा टीचर हैं ना ,  फीस देना कठिन है ...
यह सुनने के बाद  मै अपने को रोक नहीं पाया मैंने पीछे पलट के देखा .
पीछे एक 19 -20 वर्षीय बेटी थी ... आँखे कुछ तरल सी थी और मुख उदास ...
सुबह ही मेरा मन व्यथित हो गया ...

कैसी समाज व्यवस्था हो गई .एक टीचर होना दुर्भाग्य सा लगने लगा .  

कॉलेज/स्कूल में पढाई का स्तर नहीं रहा . छुट्टियों में कोई कोचिंग /क्लास बच्चे करना चाहें तो शुल्क बहुत महँगे .जो आम व्यक्ति के व्यय क्षमता से बाहर . बच्चों का पास प्रतिभा है ,समय है .शुल्क दे नहीं सकते घर में फालतू हैं . प्रतिभा और समय की बर्बादी है . आगे जीवन संघर्षों से दो चार होना होगा .कुंठा और अवसाद आएगा . देश के युवा की प्रतिभा कुंठा ग्रस्त होगी .कर गुजरने के समय को व्यर्थ गवाएंगे  .

तो कैसे राष्ट्र उन्नत होगा .कैसे समाज सुखी होगा . मनुष्य जीवन अवसादों की भेंट चढ़ना जारी रहेगा .
जिन्हें सहजता ,अनुकूलताएँ मिलीं .जिन्होंने इतने गुण हासिल कर लिए ,इतने योग्य हुए जिससे वे दूसरों को कुछ सिखाने की स्थिति में पहुंचे .कुछ तरह की जीवन सहायता दूसरों को देने की स्थिति में पहुँच गए . क्या वे राष्ट्र और समाज हित के लिए ,अपने राष्ट्र और समाज की उन्नति के लिए अपने शुल्क कम करने पर विचार करेंगे .
ताकि शुल्क अधिसंख्य की व्यय क्षमता में हो सके .देश के युवा अपनी प्रतिभा और उपलब्ध समय का यथा प्रयोग कर सकें .
जीवन संघर्ष कम होंगे तो सृजन बढ़ सकेगा . राष्ट्र उन्नति कर सकेगा . समाज ज्यादा सुखी हो सकेगा ..

--राजेश जैन 

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