HOW MECHANISM OF INSPIRATION WORKS
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सद्प्रेरणा क्यों दर्शित होनी चाहिए ?
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रक्तदान दिवस था . रक्तदान मैंने भी किया . उपस्थितों और मित्रों ने धन्यवाद किया . मैंने इस सब पर विचार किया . मुझे लगा हमें आभार उन सद्प्रेरणाओं का मानना चाहिए .जिनसे हम अपने समाज के लिए कुछ अच्छे कर्मों को अपने जीवन में कर पाते हैं . हमारे इस तरह के सद्कर्म जब निरंतर चलते हैं तो फिर हम भी प्रत्यक्ष देखने वालों के लिए सद-प्रेरणाओं के स्त्रोत बन सकते हैं .
आज जो आधुनिक माध्यमों पर अधिकता में दिखाया जा रहा है उनसे समाज विशेषकर युवा प्रेरणाएं भोगलिप्सा की ग्रहण कर रहे हैं . त्याग की प्रेरणा लेने के लिए उन्हें उदाहरण कम दिखाए जा रहे हैं .ऐसा नहीं है कि अभी हममें त्याग की भावनाएं ना बची हों .त्याग करने वाले व्यक्ति अभी भी अनेकों हैं . लेकिन उपभोगवाद की चकाचौंध में इन्हें अनदेखा कर दिया गया है . जिससे समाज स्वार्थी सदस्यों की अधिसंख्या का होता जा रहा है .
त्याग करता कोई दृश्य जब हमारे समक्ष उपस्थित होता है तो हमें सुहावना लगता है . जबकि भोग -पूर्ती के अतिरेक के दृश्य एक तरह की वितृष्णा मन में उत्पन्न करते हैं . यह सब अनुभव करते हुए भी हम त्याग के उदाहरण के रूप में कम ही आ रहे हैं .
अधिसंख्य यदि स्वार्थ-पूर्ती में लगेंगे तो समाज बुराइयों से पटेगा . जो अंततः हमारा ही मन दुखाता है . अतः हमें दुःख के कारण आसपास जो दिखते हैं सच रूप में पहचानने चाहिए .उनके सही समाधान के लिए ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए .
अपने उपभोग और त्याग के कर्मों के मध्य उचित संतुलन बनाना चाहिए .
स्मरण कर स्वयं अच्छे कार्य के दृश्य रूप में अपनी नई पीढ़ी के समक्ष उपस्थित होते हुए सद्प्रेरणा के स्त्रोत बनना चाहिए ताकि हमारा समाज एक खुशहाल समाज बन सके .
आधुनिक माध्यम (टीवी ,नेट और अन्य ) साथ ही पत्र -पत्रिकाओं में जो भलाई के उदाहरण और व्यक्ति अब भी उपलब्ध हैं उनके उचित कवेरेज का प्रयत्न करना चाहिए .
"जैसा बोओगे वैसा काटोगे " . इस सिध्दांत को सही रूप में समझना होगा .और आचरण और कर्मों में लाना होगा .
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सद्प्रेरणा क्यों दर्शित होनी चाहिए ?
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रक्तदान दिवस था . रक्तदान मैंने भी किया . उपस्थितों और मित्रों ने धन्यवाद किया . मैंने इस सब पर विचार किया . मुझे लगा हमें आभार उन सद्प्रेरणाओं का मानना चाहिए .जिनसे हम अपने समाज के लिए कुछ अच्छे कर्मों को अपने जीवन में कर पाते हैं . हमारे इस तरह के सद्कर्म जब निरंतर चलते हैं तो फिर हम भी प्रत्यक्ष देखने वालों के लिए सद-प्रेरणाओं के स्त्रोत बन सकते हैं .
आज जो आधुनिक माध्यमों पर अधिकता में दिखाया जा रहा है उनसे समाज विशेषकर युवा प्रेरणाएं भोगलिप्सा की ग्रहण कर रहे हैं . त्याग की प्रेरणा लेने के लिए उन्हें उदाहरण कम दिखाए जा रहे हैं .ऐसा नहीं है कि अभी हममें त्याग की भावनाएं ना बची हों .त्याग करने वाले व्यक्ति अभी भी अनेकों हैं . लेकिन उपभोगवाद की चकाचौंध में इन्हें अनदेखा कर दिया गया है . जिससे समाज स्वार्थी सदस्यों की अधिसंख्या का होता जा रहा है .
त्याग करता कोई दृश्य जब हमारे समक्ष उपस्थित होता है तो हमें सुहावना लगता है . जबकि भोग -पूर्ती के अतिरेक के दृश्य एक तरह की वितृष्णा मन में उत्पन्न करते हैं . यह सब अनुभव करते हुए भी हम त्याग के उदाहरण के रूप में कम ही आ रहे हैं .
अधिसंख्य यदि स्वार्थ-पूर्ती में लगेंगे तो समाज बुराइयों से पटेगा . जो अंततः हमारा ही मन दुखाता है . अतः हमें दुःख के कारण आसपास जो दिखते हैं सच रूप में पहचानने चाहिए .उनके सही समाधान के लिए ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए .
अपने उपभोग और त्याग के कर्मों के मध्य उचित संतुलन बनाना चाहिए .
स्मरण कर स्वयं अच्छे कार्य के दृश्य रूप में अपनी नई पीढ़ी के समक्ष उपस्थित होते हुए सद्प्रेरणा के स्त्रोत बनना चाहिए ताकि हमारा समाज एक खुशहाल समाज बन सके .
आधुनिक माध्यम (टीवी ,नेट और अन्य ) साथ ही पत्र -पत्रिकाओं में जो भलाई के उदाहरण और व्यक्ति अब भी उपलब्ध हैं उनके उचित कवेरेज का प्रयत्न करना चाहिए .
"जैसा बोओगे वैसा काटोगे " . इस सिध्दांत को सही रूप में समझना होगा .और आचरण और कर्मों में लाना होगा .
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