Saturday, June 15, 2013

भगवान की इक्छा को सही परिप्रेक्ष्य समझना

भगवान की इक्छा को सही परिप्रेक्ष्य समझना
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एक विवाहित युगल की दो सन्तान होती हैं .पुत्र -पुत्री के जन्म से पूरे हुए इस परिवार में खुशियाँ तो समस्त हो जाती हैं . किसी दिन कुछ सिम्टम से ज्ञात होता है बच्चे थिलेसिमिया से ग्रस्त हैं. उन्हें जीवन में नियमित रक्त की आवश्यकता होगी . युगल दुखी होता है .किन्तु बच्चों के प्रति अत्यधिक अनुराग  से विवेकवान पिता को अपने परिवार के दीर्घ जीवन की राह मिलती है . वे पहले स्वयं बच्चों को अपना रक्त देना आरम्भ करते हैं . पूर्ती ना होने पर ब्लड बैंक से उपलब्ध कराते हैं . ब्लड बैंक में माँग नुरूप रक्त उपलब्ध ना होने की कठिनाई अनुभव कर वे अपने व्यवसाय के बीच मिले समय में रक्तदान प्रोमोट (प्रौन्नत) करने पर कार्य करने लगते हैं .
रक्तदान के लाभ ,रक्त माँग और उपलब्धता की जानकारीयाँ एकत्र करते हुए अपने तरीके से जन-सामान्य में प्रसारित और प्रचारित करते हैं . कुछ जागरूक साथियों को साथ ले रक्तदान के शिविर आयोजित करने लगते हैं . धीरे धीरे उनके साथ चिकित्सक ,सामाजिक संगठन से जुड़े व्यक्ति और अन्य बुध्दिजीवी और परोपकारी आ जाते हैं .
कुछ समय बीतता है तो स्वयं उनका रक्तदान का आंकड़ा साठ यूनिट से ज्यादा हो जाता है .
अब रक्तदान के पवित्र कार्य और क्षेत्र में उनका नाम अति सम्मान से लिया जाने लगता है .

उनके द्वारा जीवन के मिल रहे संकेत को सही अर्थ में समझ लेने से रक्त की उनके बच्चों की आवश्यकता तो सरलता से पूरी होने ही लगती है .साथ ही जिन भी दुर्भाग्यशाली जिन्हें थैलेसिमिया या अन्य कारणों से रक्त की आवश्यकता आ पड़ती है उन्हें भी तुलनात्मक कम मुश्किलों से रक्त उपलब्ध हो पाता  है .

वास्तव में असामान्यता चाहे वह हमारे जीवन में कोई कमी रूप में या  अच्छाई की प्रचुरता में हमें मिलती है . उसमे भगवान की कोई इक्छा छुपी होती है लेकिन भगवान में हमारी आस्था होते हुए भी भगवान की इक्छा हमारे से जीवन में क्या करवाने की है इसे सही परिप्रेक्ष्य समझने में हम भूल करते हैं . पर उन्हें कोसने के बजाय यदि सही तरह से समझ हम भगवान की इक्छा अनुरूप कर्म कर सकें . तो भगवान हमें कहीं से कहीं पहुंचाता है .



   

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