Saturday, June 1, 2013

सर्वहिताय अपेक्षा

सर्वहिताय अपेक्षा
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प्रदूषित सागर में जल परिवर्तित करने का सामर्थ्य अकेले में होता नहीं है

किंतु अनेक रखते क्षमता इतनी स्वच्छ दो बूंद इसमें ला मिला सकते हैं

अनेक द्वारा दो बूंद जल नित दिन मिले अगर इस प्रदूषित सागर में तब

मात्रा और तीव्रता प्रदूषण की कुछ ही अवधि में ही नियन्त्रित हो सकती है

समस्या समाधान जीवन में पाने की अधीरता हौंसलो को परास्त करती है

नितदिन इसलिये स्वच्छता मनुष्य समाज सागर से कमतर होती जाती है

ऊँची चाहरदिवारियाँ भवन आसपास उठा कर हम सब प्रदूषण से बचते हैं

जिस दर से बढ़ता प्रदूषण स्तर भावी समय चाहरदिवारियाँ फांद सकता है

समाज बुराई के आसन्न संकट से बचने को व्यक्तिगत रूप में हम ना देखें

इस समाज को स्वयं का माने समस्या को एकजुट हो सब देखें और निपटें

प्रयत्न ना होना शून्य उपलब्धि और प्रयत्न से सफलता सम्भव हो जाती है

दो बूंद जल नितदिन स्वच्छता ध्येय से मिलायें सर्वहिताय अपेक्षा रखते हैं 

राजेश जैन 

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