Sunday, June 23, 2013

जीवन आँकलन

जीवन आँकलन
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एक दिन एक व्यक्ति के सम्मुख अचानक मौत आ खड़ी हुई .कहा तुम्हें कल अपने साथ ले जाउंगी . आज का दिन तुम्हें सारे मानसिक विचारों से मुक्ति है .तुम मात्र यह विचार करने योग्य बचे हो जिसमें अपने व्यतीत जीवन का आँकलन हो सके ...

उसने सोचना आरम्भ किया वह साहित्यकार था उसे लगा .. जीवन जैसा जिया है उससे कुछ और तरह से जीना ज्यादा उचित होता   . उसे जीवन में धन को ज्यादा महत्व देना चाहिए था ...

यह तो साहित्यकार का अपना जीवन आँकलन था .. लेकिन जिस किसी को भी जीवन में आँकलन करने का समय मिले उसे किसी ना किसी तरह की असंतुष्टि अपने व्यतीत जीवन के ढंग को लेकर होगी .
95 % व्यक्ति बिताये जीवन से संतुष्ट नहीं मिलेंगे . जो 5 % मिलेंगे वे मुझे लगता है वो होंगें जिन्होंने जीवन में परोपकार का अच्छा क्रम रखा होगा .

की गई  नेकी से अपेक्षा कुछ नहीं होनी चाहिए .. जब तब हम एक उक्ति प्रयोग करते हैं
"नेकी कर दरिया में डाल "

लेकिन मुझे लगता है परोपकार का बदला कुछ और मिले ना मिले .. जीवन संतुष्टि अवश्य मिलती है . यही जीवन का सार्थक होना भी कहलाता है और इसी से समाज सुखी और मानवता पुष्ट होती है .

इस सच्चाई को जो कोई जितनी शीघ्रता से जीवन में जान जाता है वह ही परहित के कर्मों के प्रति जागृत होता है और अपने जीवन से संतुष्ट भी  .


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