Wednesday, June 5, 2013

सही दिशा की तरफ चलना

सही दिशा की तरफ चलना
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मेरे मित्र अपनी प्रोफेसर पत्नी के साथ पिछले सप्ताह रात्रि दस बजे लौट रहे थे . तब उन्होंने सड़क पर एक स्त्री को बेसुध पड़े देखा . आसपास कुछ 6 -8 पुरुष थे . गाड़ी कुछ आगे बढ़ गई थी. किन्तु पत्नी के कहने पर उन्होंने अनमने रोक कर पीछे लिया .प्रोफेसर पत्नी को दिल्ली प्रकरण में राहगीरों की उपेक्षा का विचार हो आया था . उन्हें लगा स्त्री की कुछ मदद की जा सकती हो तो करें . बच्चे कार में ही थे .मित्र- पत्नी सहित उतरे, पता चला कि स्त्री के पति साथ हैं और स्त्री को चक्कर आ गया है . पत्नी को इस हालत को छोड़ वे जल लेने भी कहीं न जा पा रहे हैं . शेष लोग अपरिचित हैं .ज्ञात होने पर कार से जल ले पीड़िता को पिलाया गया . कुछ मिनट में चेतनता लौटी . दस मिनट में सब ठीक लगा तो पीड़िता पति सहित और मित्र अपनी प्रोफेसर पत्नी सहित अपने गंतव्यों की ओर बढ़ गए .
मुझे मित्र ने घटना सुनाई और बताया कि इस तरह दृश्य प्रस्तुत कर सड़कों पर कई तरह के छल किये जाते हैं . वास्तविक मदद -अपेक्षा के प्रकरण में अस्पताल और पुलिस की जटिल कभी कभी अपमान-जनक व्यवहार के संकोच में वे रात्रि अन्य कार वालों की तरह तुलनात्मक सुनसान सड़क पर रोकने का खतरा नहीं लेना चाहते थे . पर जागरूक प्रोफेसर पत्नी की स्त्री जाति के प्रति उत्पन्न करुणा और संवेदना के कारण उन्होंने अनचाहे ही गाड़ी रोक जरूरतमंद के काम आने का संतोष प्राप्त किया .

चिंतन का विषय ... भौतिकता और उपभोग लालसाओं के लालच में मनुष्य ने ऐसे घटिया कारनामे कर दिए , जिससे वास्तविक मदद के प्रकरणों में भी संदेह होने लगा . सामाजिक विश्वास नहीं लौटेगा तो किसी दिन हम स्वयं सहायता की अपेक्षा में निराश होंगे या घोर कष्ट भुगतने को लाचार होंगे ...

इस तरह का सामाजिक परिदृश्य बदलना चाहिए .. यह तभी हो सकता है जब आत्मचिंतन करते थोडा-थोडा सही दिशा की तरफ  हम सभी चलें ...


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