Wednesday, May 1, 2013

'मै बरगद', कहता तुमसे मानव

'मै बरगद', कहता तुमसे मानव
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 1 (क्या महिमा है बरगद की )...     

वाह, अस्तित्व बरगद पेड़ का देखो
रह सकता विद्यमान शताब्दियों तक
ऊपर पेड़ पर 'मानव पूर्वजों' को आश्रय
वृक्ष के नीचे थके हारे मानव को छाया

पक्षी बनाते टहनियों पर घोंसला
करते कलरव सुबह-शाम इस पर
फल अनंत सूक्ष्म जीवों का भोजन
श्रध्दा-नत होता मानव सम्मुख

प्राचीनकाल से तपस्वियों ने प्रकटाया
'ज्ञान' छत्रछाया में तप करने पर
फिर भी मानव आज इसे काट रहे
नष्ट कर सुन्दर प्रकृति मिटा रहे

 2 (बरगद ने जन्माई कवि अनुभूति)...

प्रशंसनीय "वह" जब बने ज्यादा अच्छा
मिटाने के पहले रहा था जितना
किन्तु आधुनिकता कह हम बना रहे
और पुरातन सारी शैली मिटा रहे

देख अनुभव में उठती शंकाएं
पक्षपात नहीं कथन में करेंगे
नए सृजन में कई अच्छाईयाँ 
आधुनिकता में बुराइयाँ भी भासित

मनुष्य जीवन सरलता के लिए
जो तंत्र बनाया पुरातन मिटा कर
उसमें क्या आज समाज सुखी है ?
या सच्चा था तब ज्यादा सुखी था

बनाये साधन जिनमें कई उपयोगिता
किन्तु ला खड़ी कीं भौतिक प्रतियोगिता
सबसे ज्यादा धनवान होना चाहते हैं
सबसे रूपवान बन जाना चाहते हैं
सबसे बुध्दिमान कहलाना चाहते हैं
सबसे ज्यादा लोकप्रिय होना चाहते हैं

मेरी मातृभाषा सबसे अच्छी है
देश मेरा महानतम है दुनिया में
मेरा धर्म ही सर्वोत्कृष्ट धर्म है और
मेरी मनुष्य नस्ल सबसे बेहतर है
और भी ना जाने कितने अभिमान हैं

ना मालूम क्या क्या सिध्द करेंगे
सिद्ध होगा या परस्पर लड़ मरेंगे

 3(कवि बरगदमयी हो करता निवेदन)...

मै बरगद कहता तुमसे मानव
नयन दोष दूर कर मुझे देखो
कितनों की मै करता सहायता
स्थायित्व से रख स्व-अस्तित्व
गंभीरता मेरे भाव में देखो
शीतलता स्वभाव में देखो
सहनशक्ति प्रशंसनीय देखो
शीत ऋतू नहीं ठिठुराती मुझको
झेलता सूर्य झुलसाती ग्रीष्म तपन को
सहता मूसलाधार बारिश वेग को भी मै
और जिस दिन में थक चला जाता
तब आगे युवा अपने छोड़ जाता
जो मेरे बाद में भी खड़े रहकर
चलाते परम्परा 'बरगद' सर्व हितकारी

मै खड़ा शताब्दियों से हूँ अतः
बताता प्रत्यक्ष देखी ही तुमसे
मानव तुम भी थे मुझ जैसे ही अच्छे
वापस आ जाओ मानवता के पथ पे
बन जाना जब फिर से अच्छे
नहीं शिकायत मिटा देना तब तुम मुझे

राजेश जैन
02-05-2013


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