मातृ-दिवस (Mother's Day)
वैयक्तिक भोगवाद की धारा जो बही है
वैयक्तिक भोगवाद की धारा जो बही है
इसके चपेट में माँ-पिता अपवाद नहीं हैं
मातृ-दिवस के सुहावने नारे कहे जाते हैं
माँ महिमा चहुँ ओर कही,लिखी जाती है
जब बच्चे युवा ,माँ उनकी बूढी हो जाती है
वास्तविकता माँ मान की विपरीत होती है
बच्चे के जीवन विलास के स्वप्न होते हैं
माँ सपने में कहीं नहीं या रोड़ा होती है
माँ -पिता घर में उपेक्षित हो जीते हैं
गृह कोने या वृध्दाश्रम में सिसकते हैं
पहले यही वे आदर्श हर बच्चे के होते हैं
श्रम-त्याग से उनका जीवन सींचते हैं
मातृ-दिवस महिमा स्मरण दिलाता है
पर स्मरण नहीं प्रिय यथार्थ जरुरी है
जीवन स्वप्न में संशोधन सभी करें
जीवन संध्या पर मान माँ-पिता का करें
आशीर्वाद उनका पूरा जीवन साथ था
पराश्रित हुए तब आशीर्वाद अवश्य लें
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