Friday, May 3, 2013

तुम्हारे मातृभूमि ऋण उतारने

तुम्हारे मातृभूमि ऋण उतारने
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गुलमोहर का चटक लाल रंग
ज्यों प्राणी पर यौवन निखार
लगता सूर्य को दे रहा चुनौती
आपकी ग्रीष्म की तपती धूप
ना बिगाड़ सकेगी कुछ भी मेरा

यद्यपि आप का लक्ष्य नहीं बुरा
देकर तपन बनाते भूमि उर्वरा
पर हिल जाती आत्मा पथिक की
मेहनत और चलने से प्रखर धूप में

उनकी नयनों को मेरा रंग सुहाता
मै उनसे यह कहना चाहता
ना शंका रखो सूर्यदेव प्रति तुम
प्राणीयों रखो कुछ सावधानियाँ

उर्वरित हो यह पृथ्वी उपजायेगी
जो अनाज सावन माह उपरान्त
सेवन से दमकोगे प्राणियों तुम
जैसा दमक रहा आज मेरा रंग

गुलमोहर ,सूर्य जोड़ी का सन्देश
ग्रहण करता इस ऋतू में 'राजेश'
लाओ ज्ञान में प्रखरता सूर्य भांति
फिर फैलाओ सूर्य सी दक्षता से

भौगोलिक सीमा से ना बंधना
प्रति पारिश्रमिक आस न करना
कहाँ लेते सूर्यदेव हमसे कुछ ?
देते निरंतर जीवन उर्जा सबको

नहीं सामर्थ्य 'राजेश' तुम्हारा
जितना सूर्य शक्तिशाली जैसा
जितना है लगाओ अधिकतम
सूर्य की भांति मानवता हित में

पुष्प लदी गुलमोहर शाखायें
जो झुकती वसुंधरा की ओर
कहने और दर्शाने को 'राजेश'
देखो कितनी विकट ऋतू में भी
मैंने लाया यह निखार स्वयं में
धरा की ओर झुकती मेरी शाखाएं
मातृभूमि से विनम्रभाव दर्शाती
गोद में जिस की माँ स्नेह पाकर
बना बीज से आज बड़ा मै पेड़

तुम्हारे मातृभूमि ऋण उतारने
तुम्हारे माँ मनुष्य संतानों को
देने नयन शीतलता के लिए
असहनीय विषम तपन के होते हुए
खिलता चटक रंग ये लाल लिए

प्रखर सूर्य ,दमकते गुलमोहर से
ले सन्देश सर्वहित के लिए कर्म करो     


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