Friday, May 31, 2013

कैसा साथ निभाया प्रिय तुमने

कैसा साथ निभाया प्रिय तुमने
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पचास वर्ष पूर्व मै तुम्हारे घर अपढ़ नौकरानी थी
शकल सूरत से साधारण और गहरे रंग की थी

तब तुमने मुझ में ना जाने क्या देखा
विवाहिता पत्नी को अपनी छोड़ा
मुझ दीन-हीन को घर रख लिया
पचास वर्ष तक अटूट प्रेम निभाया
बच्चे जन्मा कर पूत सुख दिलाया
धोखा तुमने विवाहिता से किया   
लेकिन मुझे पत्नी सा ठाठ दिया
प्रथम श्रेणी तुम अधिकारी थे
मुझसे प्रेम निवेदन किया करते थे
अभावों में मै जन्मी ,पली थी
कल्पना नहीं बालपने में जिन सुखों की
तुमने मुझपर उनकी बरसात करी थी

पंद्रह वर्ष पूर्व हो सेवा निवृत
तुमने छोटा घर आँगन बनाया
कभी जिक्र नहीं किया मुझसे
अर्थ व्यवस्था क्या अपने बाद बनाई
घंटे भर में उस दिन तुम जो गुजरे
वज्रपात मुझ पर होने लगे
घर में नहीं बहुत धन मिला
बैंक खाते भी रिक्त से थे
तुमने कोई ना लिखा वसीयत नामा
प्रेम महल तुम्हारे नाम था प्रिय
फैमिली पेंशन का ना अधिकार मिला
बरसों हवाई झूलों में झुला रहे थे
मौत तुम्हारी होते ही प्रिय
कठिन धरातल पर आ गिरी मै
अभावों में पैदा हुई थी
अब अभावों में मरने को लाचार हुई
नहीं चखाया होता स्वाद वैभव का
आदत मेरी ख़राब ना पड़ती
प्रेम में शिकायत का मौका ना दिया था
लेकिन बुढ़ापे में दीन कर छोड़ा

तुमसे मुझे अब शिकायत है
कहूँगी अब मै बिना हिचके प्रिय
विवाहिता को तुमने छोड़ा था
मुझे भी दुर्दशा में छोड़ गए तुम
लगता है तुम बहुत स्वार्थी थे
अबला के विरुध्द अन्याय में तुमने
भागीदार बनाया था मुझ अबला को
यह कैसा साथ निभाया प्रिय तुमने ?

मेरे किसी समय बॉस रहे . एक कर्तव्य निष्ट ,ईमानदार और शर्मीले स्वभाव के रिटायर्ड अधिकारी की मौत के बाद जब संवेदना हेतू उनके घर पर हम गये तब जिन्हें हम उनकी पत्नी जानते थे उनके मुख से यह वेदना सुनने मिली .
सज्जन सा लगता पुरुष भी जब एक नहीं दो - दो अबलाओं (नारी के) का इस तरह दोषी हो सकता है तो कैसे हमारे समाज में उन्हें सही सम्मान और सुरक्षितता बोध हो सकता है ?
नारी को और अधिक सतर्क होना चाहिये , जागृति आपस में बढ़ानी चाहिये . एक उपभोग की वस्तु जैसे प्रयोग को स्वीकार्य नहीं  चाहिए .

(वास्तविक घटना को एक काव्य की तरह कहने का  प्रयास )

--राजेश जैन 

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