मानव हैं मानवता से जियें
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जीवन में अपने सुखों के साधन और मनोरंजन प्रबंध के लिए धन की आवश्यकता हम अनुभव करते हैं .
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जीवन में अपने सुखों के साधन और मनोरंजन प्रबंध के लिए धन की आवश्यकता हम अनुभव करते हैं .
इसके दो तरीके हो सकते हैं ..
पहले धन कमाया जाए फिर साधन और मनोरंजन पर व्यय किया जाए .
साधन और मनोरंजन के लिए उधार ले धन की व्यवस्था की जाए फिर कमाते हुए उधार चुकता किया जाये .
वैसे ही जीवन आचरण और कर्म के लिए भी दो तरीके हो सकते हैं ...
सिर्फ अपनी ,परिवार और करीबियों की चिंता ,सुरक्षा और हित के हम आचरण और कर्म रखें और जीवन यापन करें .
या अपनी चिंता ,सुरक्षा और हित के पहले अन्य की चिंता ,सुरक्षा और हित के हम आचरण और कर्म रखें और जीवन यापन करें .
निर्णय और विवेक बेहद व्यक्तिगत होता है . व्यक्ति जैसा उचित माने वैसा करने को स्वतन्त्र भी है पर अपनी चिंता ,सुरक्षा और हित के पहले अन्य की चिंता ,सुरक्षा और हित के आचरण और कर्म करते जीवन यापन करने वाले को यह समाज पहचानता है . ऐसे को अपेक्षाकृत ज्यादा सम्मान तो मिलता ही है . फिर उसे स्वयं की चिंता भी नहीं करनी होती है . उसके परिवार ,पास-पड़ोस और समाज में भला चाहने वाले अनेकों हो जाते हैं .
अगर इस पध्दति से जीवन यापन किया जाए तब भी वह सुरक्षित और हितकारी जीवन हो सकता है . पर ऐसी पध्दति से जीवन जीने वाले जिस समाज में बाहुलता में होते हैं वह समाज सुखी होता है .
यह मानव में मानवता प्रदर्शित करता है .. और कम विवेकशील अन्य प्राणियों (पशुओं और अन्य ) से भिन्नता प्रदर्शित भी करता है ..
हम मानव हैं मानवता से जियें अपना मनुष्य जन्म की सार्थकता सिध्द करें ....
राजेश जैन
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