Monday, April 29, 2013

Electrical Engineering analogy with Social Engineering

Electrical Engineering analogy with Social Engineering
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बिजली उत्पादन के बाद बिजली घर में इलेक्टिकल एनर्जी की अत्यन्त विपुल मात्रा को , दूरस्थ उपयोग स्थलों और घर घर तक उसके उपयोगकारी वितरण के लिए इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पहले उसे बहुत हाई वोल्टेज (चार सौ हजार वोल्ट  या उससे भी अधिक ) के स्तर पर ट्रांसफॉर्म किया जाता है . फिर स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर के प्रयोगों से बिजली को कम खतरनाक बनाते हुए उसके वोल्टेज स्तर क्रमशः एक सौ बत्तीस केवी , तैतीस केवी ,ग्यारह केवी और अंततः चार सौ(दो सौ तीस प्रति फेज ) वोल्ट तक उतारे जाते हैं . घरों तक पहुँचने वाला यह वोल्टेज स्तर इस तरह कम खतरनाक तो होता ही है घरों की इलेक्ट्रिकल वायरिंग और इलेक्ट्रिकल उपकरणों के लिए यही स्तर उपयोगी भी होता है . चूँकि बिजली उपयोगी तो है पर खतरनाक भी बहुत है इसलिए इतनी इंजीनियरिंग कर उसे मनुष्य जीवन की सरलता के लिए निर्माण किया जाता है .

ठीक इसी तरह सोशल इंजीनियरिंग भी होती है . अलग अलग फ़ील्ड्स में अलग अलग तरह के कार्य ,वस्तु ,निर्माण ,तकनीक , विज्ञान ,प्रस्तुतियां आदि प्रतिदिन जुडती जाती हैं . इनके बनाने के उदेश्य जैसे भी हैं . उनसे मानवता को खतरा भी हो सकता है और उन्हीं में मानवता की भलाई भी निहित हो सकती है .

संसार में सभी मनुष्य का ज्ञान और मष्तिष्क स्तर में बहुत अंतर है . नए अविष्कार ,साधनों और सिध्दांतों का प्रयोग किस प्रकार से हानिरहित हो सकता है सभी उसे समझ नहीं सकते . अतः जिन्हें उनकी सही समझ होती है ऐसे एक्सपर्ट्स (विद्वान) को इलेक्ट्रिकल ट्रांसफार्मर जैसी भूमिका सोशल ट्रांसफार्मर बन निभानी अनिवार्य होती है . उनको प्राप्त (इनपुट स्तर ) जैसा भी है पर उनके मुख ,लेखन ,आचरण और कर्म से निकलने वाला (आउटपुट ) उस स्तर का हो जाना चाहिए जो साधारण मनुष्य के लिए खतरनाक ना हो और समझना सरल तथा जीवन उपयोगी सिध्द होता हो .

आज जब नित नए आधुनिक साधन और सिध्दांत उपलब्ध हो रहे हैं जो निश्चित ही मानव जीवन के सरलता के लक्ष्य से लाये जा रहे हैं . इसके बाद भी असंख्य समस्या और बुराई से आज का समाज जूझ रहा है . कहना होगा कि आधुनिक साधन और सिध्दांत में खतरा भी है (बिजली जैसा ही ) .और जिस तरह बिजली के खतरे को कम करने के लिए ट्रांसफार्मर और इंसुलेटर निर्मित और उपयोग किये जाते हैं वैसी भूमिका समाज में निभाई जानी चाहिये . पर सोशल ट्रांसफार्मर और इंसुलेटर की भूमिका के प्रति जागृति जितनी चाहिए उतनी ना होने से आधुनिक साधन और सिध्दांत का स्तर मानव उपयोगी स्तर तक लाये बिना साधारण जीवन तक पहुंच रहा है . जिससे आविष्कारों से मानव लाभान्वित होने से ज्यादा हानि उठा रहा है .

उदाहरण :- कुछ समय पूर्व तक प्रसव के समय जच्चा -बच्चा में से एक या दोनों की मौत की आशंका बहुत होती थी . चिकित्सा विज्ञान और तकनीक की उन्नति  से सोनोग्राफी सिस्टम आया जिसकी सहायता से गर्भस्थ भ्रूण की स्थिति और अन्य कोई परेशानी के कारण गर्भ के प्रारंभिक समय से ही जाँचे जाते हैं . इस तरह से जच्चा -बच्चा के प्राणों पर से खतरा बहुत कम किया जा सका है .  पर यही वह सिस्टम है जिसके हानिकर प्रयोग से कन्या भ्रूण को पहचान कर उसे आजन्मा ही मारा जाने लगा . इस तरह बीस पच्चीस वर्ष बाद की हो सकने वाली जच्चा ... बच्चा रूप भी नहीं पाती है . जच्चा-बच्चा को लाभ देने वाला विज्ञान  जच्चा-बच्चा दोनों के हनन का निमित्त सिध्द होता है .यहाँ  जान पड़ती है न ? सोशल ट्रांसफार्मर और इन्सुलेटर  की आवश्यकता .

मानवता के लिए हानिकर होती और मनुष्य समाज को कमजोर करती आधुनिकता के ऐसे विषयों का स्तर कहाँ अति उच्च और कहाँ घटाया जाना है और कहाँ उसके अहितकारी प्रयोग से आशंका होती है वहां इन्सुलेट किया जाना है यह भूमिका विद्व माने जाने वाले सामाजिक सदस्यों पर आती है .उन्हें सोशल ट्रांसफार्मर और इंसुलेटर का दायित्व स्वतः ग्रहण करना है

हम समाज निर्माण के लिए सजग होने के साथ सतर्क भी बने .

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