Saturday, April 13, 2013

परहित में निहित स्वहित

परहित में निहित स्वहित
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हम अपनी पिछली पद-स्थापना वाले स्थान पर वरिष्ठ प्रथम श्रेणी रिटायर्ड अधिकारी के यहाँ किरायेदार थे .लगभग दस वर्ष पूर्व तक हम उनके यहाँ पाँच वर्ष तक प्रथम तल पर और वे भू-तल पर स्वयं सपत्नीक रहते थे . उनसे हमें लगभग माँ-पिता सा स्नेह मिला करता था .


दस वर्ष पश्चात आज उस भवन में ना हम, ना ही वे निवासरत हैं . अंकल-औंटी दोनों की मौत हो गई है . और हम जबलपुर  आ गए थे . पाँच वर्ष के उसी भवन में निवासरत रहते हम उसे अपना नहीं किराये के घर का  और वे भवन मालिक होने का भाव रखते थे .हमारे भाव में अलग -अलग विचार बसते थे . पर अब यहाँ वह अंतर नहीं  बचा . वह भवन अब ना तो उनका और ना ही हमारा निवास रह गया है .

यहाँ ये वक्तव्य नहीं दिया जा रहा कि किसी को अपना भवन निर्माण नहीं करना चाहिए . पर निर्माण के साथ अपनी अपेक्षा और उसकी उपयोगिता का ज्ञान हमें अवश्य होना चाहिए . जिस संसार को हम अपना मानते हैं और कई हथकंडे अपना कर दूसरों के साथ छल और विश्वासघात से भी नहीं चूकते उसका यथार्थ कुछ और होता है . हर अपनी लगती वस्तु और प्राणी अस्थायी रूप से हमारे या पराये होते हैं . यथार्थ में यह संसार पूरा का पूरा पराया हो जाता है .

इस पराये संसार में कई अवसर मनुष्य के जीवन में आते हैं . जब अपनी मानी गई किसी वस्तु या साथ छिनने या वंचित होने से हम इस कदर निराश होते हैं कि अपने जीवन से मोह छूटता हमें दिखता है .

जीवन अनुभव कम रखते किशोर और युवा हमारे भाई/बहन और बच्चे बहुत ही छोटी बातों से निराश हो आत्महत्या जैसा दुर्भाग्य पूर्ण कदम उठाते हैं . कमजोर पल जिसमें ऐसा छिनना या क्षति होना इस कदम को दुष्प्रेरित करते हैं ,उस पल को थोडा धैर्य से सहन करें . .वास्तव में सिर्फ उतनी ही ख़ुशी और संभावनाओं के अवसर  किसी के जीवन में उपलब्ध नहीं होते. अपितु अगर अनमोल मिला मनुष्य जीवन पूरा जिया जाए तो  हमारी ख़ुशी और संभावनाओं के अनेकों अवसर प्रतिदिन अलग अलग ढंग और भेष में हमारे समक्ष आते हैं .
हममें से किसी को भी कितनी भी जीवन प्रतिकूलता क्यों ना देखना पड़े . स्वयं अपना जीवन अवसर  इस तरह नहीं खोना चाहिए .

इतने में ही हमारा स्वहित था और अब यह नहीं बचा तो कैसे हम जीवन जी पाएंगे .इस भ्रामक निराशा को कोई भी कभी भी अपने ऊपर हावी ना होने दे .

मनुष्य जीवन वास्तव में सिर्फ स्वहित की दृष्टि से हमें नहीं मिलता बल्कि इसमें परहित की अपार संभावनाएं भी होती हैं . अगर जीवन में स्वहित अपेक्षा पूरी ना होते दिखाई दें . तो आत्महत्या के बदले अपना जीवन हम परहित में जीना जारी रखें . ऐसा कुछ वर्ष भी हमने कर लिया तो वह प्रसन्नता मिलेगी जो शायद जिन्हें हम अपना स्वहित मानते हैं उनके बीच (उपलब्धता ) में रहते भी हमें ना मिलती .

वास्तव में परहित में ऐसा स्वहित निहित होता है . जिसका अनुभव करने आज कोई तैयार नहीं . ना ही इसके उदाहरण बहुत दृष्टव्य होते जो इसकी प्रेरणा दे सकें .

स्व-विवेक से हम ऐसा करना आरम्भ करें . यह मनुष्य जीवन सार्थकता है .यह मानवता भी है . और समाजहित के लिए इसका बढावा दिया जाना आज की प्रथम आवश्यकता भी है .

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