Sunday, April 28, 2013

सुन्दरता भारतीय दाम्पत्य जीवन (Married life) अटूटता की

सुन्दरता भारतीय दाम्पत्य जीवन (Married life) अटूटता की  
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जाने क्यों विष फैलाया जा रहा है ? क्यों जिधर तिधर विवाह-पूर्व ,विवाह उपरांत अनेकों से संबंधों में सुख प्रचारित किया जा रहा है ? इस तरह जीवन साथी /संगिनी के प्रति निष्ठा क्यों खोई जा रही है ? पूरे जीवन चलने वाले संबंधों के विच्छेद का खतरा क्यों उत्पन्न किया जा रह है ?
आज शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए विवाह से अलग तरह के संबंधों के उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं . 
इनमे पाश्चात्य विश्व ने पहले प्रयोग कर देख लिए हैं .  एक एक ने कई साथियों को आजमा भी लिया . कुछ वर्षों में विवाह विच्छेद कर फिर नया विवाह कई बार रचाया . फिर प्रयोगों के दुष्परिणामों में जीवन संध्या पर नितांत अकेले अकेले अवसादों में जीने को विवश अनेकों हैं .जीवन में यौवन निखार से आकृष्ट कई मिलते रहे . यौवन अस्त हुआ आसपास डोलने वाले गायब हुए . साथी कई बदले थे निष्ठा विहीन संबंधों में सच्चा प्रेम नहीं पनप सका . अब अकेले हैं. सुविधा है, धन है पर चित शांति नहीं है . शारीरिक विपरीतताओं के लिए तो कई उपाय किये जा  सके पर मानसिक सहारा देने वाले का आभाव सालता है .

विपरीत इसके भारत में ... अधेड़पति-पत्नी के बीच की बात .

आज वे फल सब्जी के लिए भीड़-भाड़ वाले पर थोक  फल सब्जी मंडी में जैसे तैसे कठिनाई से वाहन चलाते जा रहे हैं .
वहां ताजे भी और अपेक्षकृत कम भाव में फल सब्जी मिलते हैं . पत्नी कह रही है , कुछ समय बाद हम दोनों ही रह रहे होंगे तो यहाँ ना आया करेंगे. समीप के मॉल से ही खरीद लिया करेंगे . (उनके बच्चे अब कॉलेज के अंतिम वर्षों में है ,विवाह और जॉब के होने पर बाहर रहने लगेंगे , जिम्मेदारी निर्वहन से करीब करीब वे मुक्त हो जाएंगे ) 
पति सिर्फ सहमति का भाव चेहरे पर लाता है . कुछ बोलने के स्थान पर विचार में डूबता है . किसे पता कितना जीकर हम परस्पर साथ दोनों कितना रह पायेंगे, पर जितना होगा तुम मुझे और मै तुम्हारा सहारा जीवन में अधिकतम दिनों तक बन सकूं . इन भारतीय युगल का यौवन तो क्रमशः निस्तेज होगा  पर मानसिक एकाकी का शायद जीते जी कोई संकट नहीं है .

यह सुन्दरता है  भारतीय दाम्पत्य जीवन  अटूटता की . 

पर क्यों आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य हर बात की नक़ल प्रवृत्ति आज बढ़ रही है ? क्यों कुछ जिन्होंने स्वयं इसकी कद्र नहीं कर सके  वे अपनी अति चर्चा की प्राप्त हैसियत से आज की पीढ़ी को पथ-भ्रमित कर रहे हैं ?

पर अगर वे पथ भटका रहे हैं तो उनके जो भी मंतव्य हैं उनके साथ हम ना भटकें .
क्योंकि यह जीवन हमारा है और इसे सच्चा और अच्छा बनाना हमारा ही अधिकार और समस्या है ....

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