Sunday, April 14, 2013

मात्र भोगवाद पर आधारित आयोजन

मात्र भोगवाद पर आधारित  आयोजन
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सवा सौ वर्ष पूर्व जब विदेश में शिक्षा के लिए जाना बेहद कठिन होता था . तब वे वहां जा रहे थे . उनकी माँ ने शराब ना पीने का वचन लिया था . उन्होंने आजीवन निभाया . राष्ट्र को स्वतन्त्र कराने में पूरा जीवन लगाया . और मारे भी गए तो अमरता मिली पूरे विश्व में उनके समर्थक और अनुगामियों की  कमी नहीं .
पर विडंबना जिनका अच्छे संस्कार के लिए उल्लेख घर घर किया जाता है और अपनी संतति को उच्च संस्कार प्रदान किये जाते रहे हैं . उनका स्वयं का पुत्र शराबखोर और वेश्यागामी. हुआ और  उनके जीवन में एक शूल बनता था .

उसी तरह कई पीढ़ियों ने पराधीनता से मुक्त होने के लिए जीवन अर्पित और बलिदान दिया . और शताब्दी तक इसकी लड़ाई लड़ी .विडंबना स्वतन्त्र होने के बाद की पीढ़ियों को इसका महत्व अनुभव नहीं होता .
देश परतंत्र तो नहीं रहा पर विचार परतंत्र रहे और इस कारण विदेशी संस्कृतियाँ हमारी भव्य संस्कृति पर हावी ही रही  . देश और समाज से सांस्कृतिक मेलजोल , परस्पर सौहाद्र और शांति कम होते गई  . जश्न के नाम पर देर रात्रि की पाश्चात्य पार्टी संस्कृति सभी ओर दिखाई पड़ने लगा  . जिसमें खानपान तो ताम्सिक है ही वहाँ नियत ,दृष्टि,आचरण और कर्म मानवीय सीमा का उल्लंघन करते हैं .

मात्र भोगवाद पर आधारित इन आयोजनों को हम उन्नति और आधुनिकता निरुपित करते हैं .

क्या मनुष्य जीवन का अर्थ सिर्फ इतना है ?  फिर उनसे मुक्त क्यों हुए जो मात्र भोगवाद के लिए हमारे देश में राज चलाते थे और यहाँ का वैभव समेट -समेट कर अपने घर और देश भरते थे . उन्हें हटा यदि हम भी यह कार्य करेंगें तो सीधे -सच्चे तो वैसे ही ठगे से रहेंगे जैसे परतंत्रता में भी थे . स्वतन्त्र और परतंत्र के बीच क्या अंतर रहा ?

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