Thursday, April 4, 2013

सज्जन मनुष्य नस्ल

सज्जन मनुष्य नस्ल
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दैनिक जीवन में जुड़ रहे नित नए साधनों और सुविधाओं के कारण जीवन शैली में एक शताब्दी में इतना बदलाव आया जिसके कारण 100 वर्ष पूर्व के जीवन के विवरण पढ़कर सहज विश्वास नहीं हो पाता .
कैसे उस तरह से वे ऐसा सब कर सकते थे ? 20-25 कि .मी . का पगडंडियों पर चल लेना . पानी के लिए घंटों समय लगाना . गेहूं -दालों का हाथ-चक्की पर पीसा जाना . और कोयले की सिगड़ी या लकड़ियों से चूल्हा जला कर घंटों रसोई में लगा रहना . इत्यादि .

समय बदला साधन बदले . पुराने साधन लुप्त हुए सब सहज स्वाभाविक है .
ऐसे बदलाव में एक ऐसी चीज भी बदल गई जिसे नहीं बदलना चाहिए था . मनुष्य की कई अच्छाई भी लुप्त हो गई . समाज से  आपसी सौहाद्र कम हो गया . स्वार्थ-विहीन कर्म (परोपकार) कम हो गए . 

अगर हमें यह अच्छा नहीं लगता तो विचार करना होगा ऐसा क्यों हो रहा है ? और क्या इस प्रक्रिया को रोका जाना  है . अच्छे मनुष्य की नस्ल बचाई जानी यदि आवश्यक लगती है तो हमें इस हेतु अभी से ही गंभीर प्रयास करने होंगे .

हम मनुष्य में जिन  अच्छाईयों की विद्यमानता चाहते हैं . सर्वप्रथम वे यदि हममें नहीं हैं तो अभ्यास से उन्हें अपने में उपजाना आरम्भ करना होगा . जिस दिन हम ऐसा कर सकेंगे उस दिन लुप्तप्राय सज्जन मनुष्य नस्ल में एक की वृध्दि हो जाने का संतोष करना होगा . 

हमारा स्वयं का इस तरह से बदलना ,हमारा यह विश्वास बढ़ाएगा कि समस्त नए साधनों और सुविधाओं के बीच भी मनुष्य सज्जन बना रह सकता है . तब आत्म-विश्वास से हम और भी कई को इस नस्ल में परिणीत कर सकेंगे . 

अच्छा कुछ और को मानना और स्वयं वैसा नहीं हो पाना कमजोरी प्रदर्शित करती है . हमारे  स्व-नियंत्रण पर प्रश्न चिन्ह लगता है . और इस असमर्थता से हम समाज को अच्छा नहीं रख पायेंगे . प्रकट में शायद इसे (व्यस्तता के कारण ) नहीं मान पायेंगे . पर परोक्ष रूप से हम अपने बच्चों और आगामी संतति पर अन्याय के दोषी होंगे .

जिस तरह एक अच्छा घर अच्छी प्रतिष्ठा और ठीकठाक वैभव हम अपने बच्चों को विरासत देना चाहते हैं . वैसे ही एक अच्छे समाज की विरासत देना भी हमारा कर्तव्य होता है . आखिर हमारा बच्चा (फिर उसके बच्चे ) इसी समाज में जीवन यापन करेंगे .

क्या सुरक्षा के लिए देश से अन्य देशों में उनका पलायन हमें पसंद होगा . और यदि हाँ तो क्या आधुनिक ,सुविधा और वैभव संपन्न अमेरिकी या यूरोपीय संस्कृति हमें पसंद है ? क्या हमारे संस्कार और संस्कृति ठीक नहीं रहे हैं ?

हमारी इक्छा-शक्ति ,स्व-नियंत्रण , आत्मानुशासन और त्याग सज्जन मनुष्य नस्ल को लुप्त होने से बचा सकती है . मानवता यही है . अपना योगदान हम अपने जीवन उपरांत अच्छे समाज और अच्छी परम्परा को बढ़ावा देने के लिए जीवन रहते कर सकते हैं . अभी है बहुत समय हमारे जीवन में ... 

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