Friday, April 19, 2013

Commit & Rollback

Commit & Rollback
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हम सॉफ्टवेअर डेटाबेस में काम करते हैं तो वहां किसी बदलाव को पक्का करने के लिए commit और बदलाव को रद्द करने के लिए rollback स्टेटमेंट लिखते हैं . 

लेकिन जीवन समयचक्र में हमें किसी भी बदलाव के लिए rollback का विकल्प नहीं मिलता है .अतः अपने जीवन के प्रत्येक पल में किया या होने वाला बदलाव इतना नियन्त्रित और अच्छा होना चाहिए ताकि ऑटोमेटेड होने वाले commit के बाद हमें वह अप्रिय ना लगे .

हर बीतने वाला क्षण यद्यपि भविष्य में उस जैसा कोई और क्षण तो बनाया जा सकता है .पर बिलकुल वही कभी नहीं होता . हम जीवन में लापरवाही में बहुत से ऐसा समय बिता देते हैं जो हमें तो प्रिय होता है पर अन्य को अप्रिय लगता है . ऐसे प्रिय क्षण बहुधा अति निज स्वार्थ के होते हैं . जो commit होते जाते हैं . फिर हमारे जीवन को जब दूसरे अपनी तरह से देखते हैं तो उसमें ढेरों बुराई दिखाई देती है . इन कमजोर क्षणों के बीतने के बाद कभी हमें स्वयं को ऐसे बीते प्रिय पल अपने ही अन्य दृष्टिकोण में अप्रिय लगते हैं .

उक्त अंश को पढ़ते हमारे मन में प्रश्न आ सकता है ,क्या अपना जीवन हमें दूसरों की टीका टिप्पणी को ध्यान करते जीना चाहिए ? उत्तर अंशतः ना है . पर हमें जीने का तरीका वह चुनना चाहिए जो स्वहित के साथ ही परहित में भी हो . फिर ऐसे लोगों का हमें अनदेखा भी कर देना चाहिए जो हमारे इस तरह के जीवन के लिए भी टीका करने बैठे होते हैं . वे हमारे हितैषी नहीं होते हैं .

मनुष्य रूप में जन्म लेकर  जीने वाले कई तरह से जीवन जीते और चले जाते हैं .

एक - सिर्फ अपने सुख के लिए , दूसरों के सुख-दुःख से कोई सरोकार नहीं .
दो -  ज्यादा अपने सुखों के लिए, धार्मिक या सार्वजानिक दिखावे के लिए थोड़ा अन्य के सुखों के लिए .
तीन - अपने सुख के साथ अन्य की सुख की चिंता और उसके लिए काम करते हुए .
चार - अपने सुखों की चिंता कम पर दूसरों के  दुःख मिटाने के लिए अधिक .
पाँच - सिर्फ दूसरों के  दुःख मिटाने के लिए उसी में अपना सुख पा लेने के लिए .

अगर सद्बुध्दि हमें तीन ,चार और पाँच के तरह जीवन यापन की मिली है तो बहुत ही उत्तम है . ऐसे पल commit होते जाएँ हमारे जीवन में हमें कोई चिंता नहीं होनी चाहिए .

समाज और मानवता के लिए हितकारी है ये .
हमें अन्य जीवन मनुष्य रूप मिलेगा या नहीं .और मनुष्य रूप मिलेगा भी तो यह सद्बुध्दि हमें मिल सकेगी या नहीं इसका कोई निश्चितता नहीं है . इस जीवन में यह हमारे साथ है तो इस जीवन को तो हम सार्थक कर ही लें .

राजेश जैन 

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